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सबको पीड़ा नहीं देते शनिः

शनि संतुलन एवं न्याय के ग्रह हैं. अपने पिता सूर्य से अत्यधिक दूरी के कारण प्रकाशहीन हैं इसलिए इन्हें अंधकारमय, विद्याहीन, भावहीन, उत्साहहीन, नीच, निर्दयी, अभावग्रस्त माना जाता है पर शनि ग्रहों के बीच दंडाधिकारी हैं.

विशेष परिस्थितियों में शनि अर्थ, धर्म, कर्म और न्याय का प्रतीक हैं.

इसके अलावा शनि ही सुख-संपत्ति, वैभव और मोक्ष भी देते हैं. इसलिए जब आप शनि के प्रभाव में हों तो आप बुरी आदतों का त्याग कर दें. सोभ, छल, धोखा, बेईमानी से एकदम दूरी बना लें अन्यथा शनि बहुत पीडित करते हैं.

यथासंभव आध्यात्म का मार्ग लें. बेइमानी से बचें. जिस शनि से आप डर रहे हैं वह आपके लिए लाभ के राह खोल देंगे.

शनि पीड़ा की शांति के उपायः

हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, दशरथ कृत शनिस्तोत्र का यथासंभव स्वयं पाठ करना चाहिए.

शनि प्रदोष को यथासंभव शिवजी, हनुमानजी और शनिदेव की प्रार्थना करें.

अपाहिजों, बीमारों की सेवा करनी चाहिए. गरीबों को काला कंबल दान करना चाहिए.

अपने से बड़ों के प्रति आदर का भाव रखना चाहिए. माता-पिता की सेवा करें.

मांस-मदिरा के सेवन से बचें और यथासंभव सत्य ही बोलें.

सरसों के तेल का छाया पात्र में दान. एक बड़े कटोरे में सरसों का तेल लें. उसमें पांच का सिक्का डालकर अपनी छाया देखें. फिर वह तेल किसी को दान कर दें.

चीटिंयों के लिए शनिवार को चीनी मिश्रित आटा खाने के लिए एकांत में रख दें.

शाम को पीपल के पेड़ के नीचे तिल या सरसों के तेल का दीपक जलाएं. पीपल की सात बार परिक्रमा भी करें.

शनि की ढैया से ग्रस्ति व्यक्ति को हनुमान चालीसा का सुबह-शाम यथासंभव पाठ करना चाहिए.

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