सपने देखते बालरूप शिवजी

शिवपुराण की कथा ब्रह्माजी अपने पुत्र नारद को सुना रहे हैं. पिछली कथा से आगे,

पृथ्वी के सभी महात्माओं ने मिलकर प्रयाग में एक बार बहुत विशाल यज्ञ का आयोजन किया. सनकादि सिद्ध गण, देवर्षि, प्रजापति, ब्रह्मज्ञों आदि सभी को निमंत्रण दिया गया. मैं भी उस यज्ञ में गया.

संयोगवश सती और पार्षदों के साथ विचरण करते हुए शिवजी भी उधर पहुंचे. उपस्थिति सभी महात्माओं ने खड़े होकर उनका अभिनंदन किया. शिवजी की विशेष रूप से अभिवादन हुआ.

थोड़ी ही देर बाद प्रजापति दक्ष भी उस यज्ञ में आए. दक्ष को मैंने समस्ता ब्रह्मांड का अधिपति प्रजापति नियुक्त किया था लेकिन दक्ष इस बड़े पद के योग्य खुद को सिद्ध नहीं कर पाए.

दक्ष के आने पर भी सबने खड़े होकर उनका अभिनंदन किया. सिर्फ मैं, विष्णुजी और शिवजी खड़े न हुए. दक्ष को प्रजापति होने का गर्व था इसलिए वह क्रुद्ध हो गए. मैं तो उनका पिता था इसलिए वह मेरे नहीं खड़े होने पर कुछ न बोले.

श्रीविष्णु जगत के पालनकर्ता थे. अतः दक्ष उनसे अपेक्षा नहीं रख सकते थे. शिवजी के संग उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह किया था. इस नाते वह उनके ससुर थे. दामाद ने ससुर की वंदना क्यों नहीं की. इस बात पर वह संयम न रख पाए.

विवेकहीन हो दक्ष ने भगवान रूद्र को लक्ष्य करके ऊंचे स्वर में ऋषिगणों को सुनाते हुए शाप दिया- भूत-पिशाचों की संगति में रहने वाला शिव शिष्टाचार विहीन है. मेरे स्वागत में सभी देव, असुर, ऋषि, सिद्ध उठे पर इसने बैठे रहकर अविवेक का परिचय दिया.

यह रूद्र चारों वर्णों से अलग और कुरूप है, स्त्री में आसक्त रहने वाला और आचारहीन है. मैं इसे यज्ञ से बहिष्कृत करता हूं. आज से यह देवों के साथ यज्ञ भाग ग्रहण करने से वंचित रहेगा.

भृगु आदि कुछ महर्षि दक्ष का समर्थन करने लगे परंतु ज्यादातर ने मौन धारण करना ही उचित समझा. नंदी से शिवजी का यह अपमान सहन न हुआ. नंदी क्रोध में तमतमाकर बोल पड़े.

हे दुर्बुद्धि दक्ष! जिन भगवान शिवजी के स्मरण मात्र से सभी यज्ञ सफल हो जाते हैं, तीर्थ पवित्र हो जाते हैं, तूने उन्हें शाप दिया है. तूने सृष्टि के रचयिता, पालक और संहारक के वास्तविक रूप को जाने बिना उन्हें शाप देने की धृष्टता की.

नंदी की फटकार से दक्ष का क्रोध और बढ़ गया. उसने फिर कहा- मैं रूद्र के सभी गणों को वैदिक मार्ग से बहिष्कृत करता हूं. तुम सब महर्षियों द्वारा त्यागे जाओगे, सभ्य समाज में स्थान ग्रहण करने के अधिकारी न रहोगे. पाखंड और मदिरापान में लिप्त रहोगे.

दक्ष के ऐसा कहने पर नंदी ने शिव विरोधी सभी ब्राह्मणों को ब्रह्मराक्षस होने का शाप दे दिया तो वहां हाहाकार मच गया. तब शिवजी उठे और उन्होंने नंदीश्वर को शांत होने का आदेश देते हुए कहा-

नंदीश्वर तुम बुद्धिमान हो. तुम्हें ब्राह्मणों को शाप देना शोभा नहीं देता. तुम जानते हो मुझ पर किसी के शाप का कोई प्रभाव नहीं होता. फिर तुम व्यर्थ ही उत्तेजित हो रहे हो. आश्चर्य है कि तत्वज्ञान के परमसिद्ध होकर तुम स्वयं पर नियंत्रण न कर सके.

शिवजी द्वारा समझाए जाने पर नंदी शांत हो गए. उसके बाद शिवजी ने उस स्थान का त्याग कर दिया और वहां से चल पड़े. दक्ष का दुर्भाग्य था कि वह अब भी नहीं समझ पाया.

महादेव के प्रति उसके मन में प्रतिशोध का भाव आ गया. वह प्रतिशोध और प्रतिहिंसा की अग्नि में जलता रहा. शिवद्रोहियों का बुद्धि-विवेक समाप्त हो ही जाता है. सो तक्ष के साथ भी ऐसा हुआ.

वह नीचता पर उतारू हो गया. उसकी तुच्छता की पराकाष्ठा हो गई और उसने शिवजी के सार्वजनिक अपमान करने की ठान ली…
(शिव पुराण रूद्र संहिता, सती खंड-2) क्रमशः जारी….

संकलन व संपादनः राजन प्रकाश

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