शिवपुराण की कथा ब्रह्माजी अपने पुत्र नारद को सुना रहे हैं. पिछली कथा से आगे…

गिरिराज हिमवान और मेना ने सताइस वर्षों तक मां भगवती की उपासना की. देवी ने प्रसन्न होकर दर्शन दिए तो पति-पत्नी ने उनकी अनेक प्रकार से स्तुति की. देवी उनपर बहुत प्रसन्न थीं और वरदान मांगने को कहा.

मेना ने मांगा कि आप पुत्री रूप में मेरे गर्भ से जन्म लें. देवी ने कहा कि मैं अयोनिजा हूं लेकिन आप पर प्रसन्न हूं इसलिए यह विनती स्वीकार करती हूं. जगत कल्याण के लिए देवों को मैं पहले ही यह वचन दे चुकी हूं. यह कहकर देवी अंतर्धान हो गईं.

समय आने पर परम सुंदरी और गुणवान कन्या के रूप में देवी ने अवतार लिया. पर्वतराज की पुत्री होने से उनका नाम पार्वती हुआ. मेना ने उन्हें उमा नाम दिया. देवी के जन्म के बाद हिमवान के ऐश्वर्य और प्रभाव में बहुत वृद्धि हो गई.

नारद पार्वती किशोरवय हुईं तो एक दिन तुम विचरते हुए वहां जा पहुंचे. वत्स तुम कौतुकी हो. दूसरों को असमंजस डालने में तुम्हें विशेष सुख मिलता है. तुमने उस दिन भी कुछ वैसा ही किया. हिमवान और मेना ने तुम्हारा स्वागत किया.

कोई भी देवी-देवता अवतार लेने से पूर्व अपने माता-पिता की स्मृति में से यह मिटा देते हैं कि उनके घर में किसका अवतार हो रहा है ताकि वे माता-पिता के वात्सल्य का आनंद ले सकें. हिमवान और मेना भी अब नहीं जानते थे कि पार्वती कौन हैं?

उन्होंने तुम्हें पार्वती की जनमकुंडली दिखाई. तुम कौतुक में जगतजननी का भाग्य वांचने लगे. तुमने कहा- कन्या उत्तम लक्षणों वाली परम सौभाग्यवती है. ऐसी पुत्री के माता-पिता बनने के लिए पूर्वजन्म में बहुत पुण्य करने पड़ते हैं.

तुम्हारे वचन सुनकर मेना और हिमवान गदगद होकर तुम्हें नमन करने लगे तभी तुमने कौतुक किया- कन्या की विवाह रेखा विचित्र है. योगी, संसार के मोह-माया से दूर, सुख-दुख से परे, मान-सम्मान की चिंता से मुक्त और श्मशान में बसने वाला पति मिलेगा.

यह सुनकर हिमवान और मेना चिंतित हो गए. उन्होंने पूछा- पुत्री का दुर्भाग्य दूर करने का उपाय बताएं. तुमने सांत्वना देकर कहा- इसका भाग्य ब्रह्माजी ने लिखा है. इसे बदलने का सामर्थ्य किसी में नहीं. विवाह के लिए चिंता की आवश्यकता नहीं. उमा के लिए शिवजी योग्य वर होंगे.

वह सर्वसमर्थ हैं. लीला के लिए विभिन्न रूप धरते हैं. समर्थ पुरुषों द्वारा किया गया कुछ भी अशुभ नहीं होता. अग्नि शव को जलाती है तो क्या वह स्वयं अपवित्र हो जाती है? सूर्य की किरणें दूषित पदार्थों पर भी पड़ती हैं तो क्या वह दूषित हो जाती हैं.

शिवजीके साथ आपकी कन्या का विवाह होना सबके लिए परम सौभाग्य का विषय होगा. शिव सर्वेश्वर हैं, निर्विकार, पूर्ण समर्थ और अविनाशी हैं. उमा जैसी कन्या उन्हें अपने योग्यबना लेगी और सुखपूर्वक रहेगी. इससे विवाह कर शिव अर्धनारीश्वर होंगे.

हिमवान के मन में कुछ संशय था. वह बोले- मुनिवर मैंने सुना है कि शिवजी ने पूर्वकाल में दक्षपुत्री सती को वचन दिया था कि वह उनके अतिरिक्त किसी और से विवाह न करेंगे. फिर वह क्या अपने वचन का उल्लंघन करेंगे?

ब्रह्माजी बोले- नारद तुमने उनके मन का भ्रम मिटाने का प्रयास किया. तुमने कहा- आपकी यह पुत्री ही भगवती है. उन जगदंबा ने अबकी बार आपके घर में अवतार लिया है. इस जन्म में वह तप के द्वारा शिवजी को पतिरूप में प्राप्त करेंगी.

नारद तुम्हारे द्वारा यह जानकर दोनों बड़े प्रसन्न हुए. वे अपने भाग्य पर इतराने लगे कि स्वयं जगदंबा ने उनके घर अवतार लिया है. दोनों पार्वती का अभिनंदन करने लगे. तुम्हें इस रहस्य से परिचित कराने के लिए प्रणाम करने लगे.

शिवजी तो अनंत समाधि में थे. एक दिन उन्होंने अचानक समाधि खोली. उसका परिणाम हुआ मंगल ग्रह का जन्म… रूद्र संहिताः पार्वती खंड. कथा क्रमशः जारी रहेगी…

संकलन व संपादनः राजन प्रकाश

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here