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पांचाल के राजा ने भगवान् विष्णु को घोर तपकर प्रसन्न किया और उनसे ऐसे पुत्र का वरदान लिया जो धार्मिक, विद्वान और योगी होने के साथ-साथ प्राणियों की बोली का जानकार भी हो. प्रभु की कृपा से उनमें सारे गुण आ गए.

एक बार राजा ब्रह्मदत अपनी पत्नी संनति के साथ बाग में घूमने गये. राजा ने चींटा-चींटी को एक दूसरे से बात करते देखा तो उत्सुकतावश सुनने लगे. चींटा रूठी हुई चींटी को मना रहा था.

परंतु चींटी का क्रोध कम न होता था. राजा दोनों के संवाद ध्यान से सुनने लगे. चींटी की शिकायत थी कि उसके पति ने लड्डू का स्वादिष्ट चूरा ले जाकर उसके स्थान पर किसी अन्य चींटी को दिया था.

राजा ब्रह्मदत चींटे-चींटी के प्रेम मनुहार की बात सुनकर हंसने लगे. महारानी को यह विद्या नहीं आती थी इसलिए उन्होंने समझा कि राजा उनपर हंस रहे हैं. उनका मजाक उड़ा रहे हैं. वह हंसी का रहस्य जानने के लिए हठ करने लगी.

राजा ने बताया कि वह पशु पक्षियों की भाषा समझते हैं पर रानी को विश्वास न हुआ. उन्हें लगा कि राजा या तो झूठ बोल रहे हैं या कोई अन्य कारण है. रानी ने स्पष्ट कर दिया कि यदि राजा ने इसका उचित कारण न बताया तो वह हमेशा के लिए उनसे विमुख हो जाएंगी.
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