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उस राजा का शानदार जीवन देख पितृभक्त, श्राद्धकर्ता पितृवर्ती के दिल में राजा बनने की इच्छा हुई. दूसरे दो चकवे भाइयों को लगा कि मंत्री बनने में भी बड़ा मजा है. उनमें मंत्री पद पाने की इच्छा हो गई.

एक चकवा तो राजा विभ्राज के पुत्र रूप में ब्रह्मदत नाम से पैदा हुआ. बाकी दो कंडरीक और सुबालक नाम से मंत्री के पुत्र हुए. राजा विभ्राज की मौत के बाद एक तो ब्रह्मदत नाम का राजा हुआ. दोनो मंत्री पुत्र भी उसके साथ मंत्री बन गये.

बचे चारों भाई आगे चलकर ब्राह्मण कुल में पैदा हुए. यह ब्राह्मण सुदरिद्र था जिसके वे चारों बेटे बने. सुदरिद्र राजा ब्रह्मदत के पांचाल नगर के करीब के गांव में रहता था. हर बार की तरह इस बार भी इन चारों को अपने पिछले जन्म की सारी बातें याद थीं.

अपने बारे में सब पता रहने के चलते इस बार भी उनमें वैराग्य एवं तपस्या इच्छा पैदा हुई सो एक दिन चारों भाइयों ने अपने पिता सुदरिद्र से कहा- पिताजी! हम लोग तपस्या करके परम सिद्धि पाना चाहते हैं.

बेटों की बात सुनकर बहुत बूढे हो चुके सुदरिद्र घबराकर बोले- दरिद्र पिता को छोड़कर तुम लोग वनवासी होना चाहते हो? यह तो कोई धर्म न हुआ. पिता ने उन्हें वन जाने से मना कर दिया.

बच्चों ने कहा- पिताजी! इसकी चिंता न करें. बस आप कल सुबह राजा ब्रह्मदत के सामने जाकर यह श्लोक पढ़ दें तो आपके जीवनयापन का प्रबंध हो जाएगा. बेटों के कहने पर सुदरिद्र ने उन्हें श्लोक सुनाया.
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