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भगवान महाकालेश्वर की महात्म्य कथा है. बालक ने पत्थर को शिवलिंग की तरह पूजा तो प्रकट हो गए थे महाकाल.

उज्जयिनी के राजा चंद्रसेन महान शिवभक्त थे. शिवजी के प्रमुख गण मणिभद्र चन्द्रसेन के मित्र बन गए. प्रसन्न होकर मणिभद्र ने चन्द्रसेन को चिन्तामणि नामक एक महामणि प्रदान की.

चिंतामणि, कौस्तुभ मणि और सूर्य के समान चमकदार थी. उसको देखने, सुनने से मनुष्यों का मंगल होता था. चंद्रसेन के गले में चिन्तामणि को शोभा पाते देख अन्य राजाओं में ईर्ष्या हुई.

चंद्रसेन से चिढ़े उन राजाओं ने अपनी चतुरंगिणी सेना तैयार की और उस चिन्तामणि छीनने के लिए आ धमके. कई राज्यों की संगठित सेना ने राजा चन्द्रसेन पर आक्रमण कर दिया.

नगर को शत्रुओं से घिरा देख चन्द्रसेन महाकालेश्वर भगवान शिव की शरण में पहुंच गए. वह उपवास-व्रत लेकर भगवान महाकाल की आराधना में जुट गए.
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