Krishna with Radha and Gopis in Braj

भगवान श्रीकृष्ण ने सचमुच सोलह हजार ब्याह किए थे? योगीराज श्रीकृष्ण ने ऐसा किया था या इसका कुछ और अर्थ है?

नरक चतुर्दशी जिसे रूप चतुर्दशी भी कहते हैं. उसके बारे में प्रचलित है कि भगवान श्रीकृष्ण ने देवी सत्यभामा की सहायता से भौमासुर का वध किया. उसके महल में बंदी 16,100 राजकुमारियों को मुक्त कराया. और फिर उनका उद्धार करने के लिए उन्हें विवाहिता का दर्जा दिया.

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विधर्मी लोग भगवान की इन 16,100 रानियों के पीछे तरह-तरह की बातें कहते हैं,. प्रभु के प्रति दुर्भाव प्रदर्शित करते हैं. यह उनकी आसुरी प्रवृति है. परंतु इससे दुखद बात यह है कि सनातनी भी योगीराज श्रीकृष्ण के लिए मूर्खता में भरकर इन रानियों के विषय में अनुचित बातें कह देते हैं और अज्ञानता में पाप के भागी होते हैं.

भगवान श्रीकृष्ण ने भौसामुर के कारागार से सोलह हजार कन्याओं को मुक्त कराया और उनका वरण कर लिया. यह सत्य तो है परंतु अर्धसत्य. प्रभु ने आखिर क्यों ब्याह कर लिया सोलह हजार कन्याओं से. और वह भी उनकी ब्याहता पत्नी साथ में थीं, उन्होंने इस कार्य के लिए अपने पति का पूजन क्यों किया. क्या यह बात हमें कुछ सोचने को विवश नहीं करती? आखिर ऐसा था, क्या लीला थी.

उस रहस्य पर एक विवेचना पढ़िए.

भौम का अर्थ है शरीर. इस शरीर के सुख मेँ ही जो रमा रहे वह है भौमासुर. भौमासुर विलासी जीव का प्रतीक है. भौमासुर ने आखिर सोलह हजार कन्याओं को क्यों बन्दी बनाया था? यह संख्या अपने आप में बहुत कुछ है.

ये सोलह हजार कन्याएँ वेदों की ऋचाएँ हैं. वेद के तीन काण्ड और एक लाख मन्त्र हैं.

पहला, कर्मकाण्ड जिसमें अस्सी हजार मन्त्र हैं और जो ब्रह्मचारी के लिए हैं.

दूसरा, उपासना काण्ड जिसके सोलह हजार मन्त्र हैँ और ये गृहस्थों के लिए हैँ.

तीसरा- ज्ञानकाण्ड. इसके चार हजार मन्त्र हैं, जो सन्यासियों के लिए है.

वेदान्त का ज्ञान विरक्त जीव के लिए है, किसी विलासी के लिए नहीँ. विलासी उपनिषदों का तत्वज्ञान समझ नही पाता किन्तु भागवत तो सभी के लिए है.

वेदों ने ईश्वर के स्वरूप का वर्णन तो किया किन्तु ईश्वर को पा न सके. इसलिए वेदों की ऋचाएं कन्या बनकर श्रीकृष्ण से विवाह करने आईं. वेदों के मन्त्र केवल शब्द रुप नहीं है, बल्कि प्रत्येक मन्त्र ऋषि हैं, देवता हैं. वेद मन्त्रों के देवता सभी तरह की तपस्या करके थक हार गये फिर भी ब्रह्म से सम्बन्ध नहीं हो पाया.

विवश होकर उन्होंने कन्या का रूप धरा और पृथ्वी पर आ गए. वेद की ऋचाएं कन्या बनकर प्रभु की सेवा करने आयीं. गृहस्थाश्रम धर्म का वर्णन वेद के सोलह हजार मन्त्रों में किया गया है सो श्रीकृष्ण की सोलह हजार रानियां कही गयी हैं.

श्रीकृष्ण ने सोलह हजार कन्याओं को मुक्त तो किया किन्तु वे सब भौमासुर के कारागृह मेँ बन्द थीं. इसलिए जगत का कोई पुरुष उनसे विवाह करने के लिए तैयार नहीं हुआ. वे सभी कन्याएं श्रीकृष्ण की शरण में आयीं.

श्रीकृष्ण शरणागत का उद्धार करने से कैसे मना करते. उन सभी कन्याओँ के साथ विवाह कर लिया. इसमें कोई विलासिता नहीं थी. यह तो ईश्वर द्वारा शरणागत के उद्धार का सीधा-सीधा विषय था.

विलासी भौमासुर ने कन्याओं को बन्दी बनाया अर्थात कामी व्यक्ति जो मंत्रों के योग्य नहीं है उसने मंत्रों का अनर्थ किया. कामी व्यक्ति मंत्र का जो अर्थ निकालेगा उसका उद्देश्य अपने विलासी मन की पुष्टि ही होती है.

ऐसे व्यक्ति मंत्रो का दुरुपयोग करते हैं. वेद का तात्पर्य भोग में नही त्याग में है. वेद को भोग नहीं, त्याग ही इष्ट हैं. वेदों का तात्पर्य भोगपरक नहीं, निवृतिपरक है.

प्रवृत्तियों को एक साथ छोड़ा तो नहीं जा सकता किन्तु कुछ भी करे वह धर्म की मर्यादा में रहकर करें, धर्म की मर्यादा मे रहकर ही घन उपार्जन एवं काम उपभोग करें. वेद कहते हैं कि भोगों को धीरे धीरे कम करते हुए संयम को बढ़ाओ.

वेदों ने प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों की चर्चा की है किन्तु निर्देश निवृत्ति का ही है. बातें बहुत गूढ़ हैं. इस बात को नहीं समझते लोग इसलिए श्रीकृष्ण के सोलह हजार रानियों के मर्म को नहीं समझते.

श्रीकृष्ण की हर लीला ज्ञान का सागर है. उन्हें समझना होगा. उनका प्रचार करना होगा. विधर्मियों की बातों में सनातनी भी बहे जाते हैं. वे भी तरह-तरह के आक्षेप शुरू कर देते हैं, यह बात पीडादायक है. हमें यदि कोई रहस्य पता नहीं तो उसे पता करने की कोशिश करनी चाहिए. न कि उसके लिए देवताओं का उपहास. मैं बार-बार कहता हूं हमारी पौराणिक कथाएं रूपअलंकार या लाक्षणिक रूप में कहे गए हैं. सबकुछ कथाओं के माध्यम से कहा गया है. हर कथा के पीछे कुछ रहस्य कुछ मर्म है.

सबसे कम काम तो हमारी संस्कृति पर शोध का हुआ है. हम अंधाधुंध पश्चिमी नकल में ही रहे. पश्चिम को ही संसार, यथार्थ समझते हैं. दासता से पूरी तरह अभी मुक्त नहीं हुए हैं.  कितना शोध हुआ है पुराणों पर. नहीं के बराबर. बाकी रहा सका सत्यानाश ये टीवी प्रेमी कथावाचक कर दे रहे हैं. अर्थ का अनर्थ बताकर. कथाओं को बस ज्यों का त्यों कह दे रहे हैं. लोग उसे ही सत्य समझकर भ्रमित हो रहे हैं. खैर, समय आने पर सब होगा. हमें जागरूक रहना है. विधर्मियों को उचित और तर्कपूर्ण उत्तर देना है.

जय श्री कृष्ण

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