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अब धोबी को घबराहट होने लगी कि मेरी दुर्बुद्धी ने इतना निंदनीय कर्म करवा दिया कि यमराज भी मुझे नहीं रख सकते. अब तो मेरा जाने क्या हो.

भगवान ने धोबी की घबराहट देखकर संकेत से कहा- तुम घबराओ मत! मैं अभी तुम्हारे लिए एक नए साकेत का निर्माण करता हूं. तब भगवान ने उस धोबी के लिए एक अलग साकेत धाम बनाया.

सिय निंदक अघ ओघ नसाए, लोक बिसोक बनाइ बसाए।

ऐसा अनुभव होता है कि आज भी वह धोबी अकेला ही उस साकेत में पड़ा है जहां कोई देवी-देवता का वास नहीं है. नहीं तो वह किसी को देख सकता है और न ही उसको कोई देख सकता है. इस तरह धोबी न घर का रहा न घाट का. (रामायण की क्षेपक कथा)
संकलन व संपादनः राजन प्रकाश

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