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शशिकला न मानी. उस दिन सुबाहु ने तो राजाओं से यह कह दिया कि कल आएं. आज शशिकला तैयार नहीं है. स्वयंवर में आए राजा मान गए पर शशिकला किसी हाल में तैयार न हुई.
शशिकला ने कहा- इतना ही भय है तो अब एक ही रास्ता है. सुदर्शन इसी नगर में हैं. उन्हें बुलवाइए, रातों रात गुप्त रीति से विवाह कराकर हम दोनों को अपने राज्य की सीमा से बाहर ले जाकर सुरक्षित छोड़ आइये.
राजा सुबाहु के पास और कोई चारा भी न था. सुदर्शन को बुलाकर शीघ्रता में शादी करायी और दोनो को सुबह होने से पहले काशी से बाहर ले जाने के लिए निकले परंतु शत्रुजित के जासूसों ने यह खबर उस तक पहुंचा दी थी.
शत्रुजित अपने नाना की सेना के साथ सुदर्शन और सुबाहु के सामने आ खड़ा हुआ. उसने ललकारा तो सुदर्शन भी अपना दिव्य तीर धनुष ले तैयार हो गया. एक तरफ वह अकेला था तो सामने सेना. यह अन्याय देख स्वयं देवी वहां प्रकट हो गयीं.
देवी को देखते ही युद्धजित की सारी सेना भाग खड़ी हुई. शत्रुजित अपने नाना समेत मारा गया. मां जगदम्बा सुदर्शन पर प्रसन्न थीं. मां ने कहा- सुदर्शन कोई इच्छित वर मांग लो.
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