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नारद अचरज में थे. वह भगवान विष्णु के पास आए और बोले भगवन- मैं सारे दिन उस किसान के संग रहा. लेकिन वह तो विधिपूर्वक आपका नाम भी नहीं लेता.

उसने तो बस थोडी देर सुबह, थोडी देर शाम को जल्दबाजी में आपका ध्यान किया. मैं तो चौबीस घंटे सिर्फ़ आपका ही नाम भजता हूं. फिर भी वही आपका सबसे प्रिय भगत क्यों है? यह तो मेरे साथ अन्याय है.

श्रीहरि ने अमृत से भरा एक कलश नारद को दिया और कहा- इस कलश को लेकर तीनों लोकों की परिक्रमा करके आइए, लेकिन ध्यान रहे अगर एक बूंद अमृत भी नीचे गिरा तो आपके सारे पुण्य नष्ट हो जाएंगे.

नारद वह कलश लिए तीनों लोकों की परिक्रमा करने के बाद प्रभु के पास लौटकर आए और बताया कि उन्होंने परिक्रमा भी कर ली और अमृत छलकने भी नहीं दिया.

प्रभु ने पूछा- इस दौरान आपने मेरा स्मरण कितनी बार किया? नारद बोले- प्रभु मेरा सारा ध्यान तो अमृत कलश पर था इसलिए मुझे आपके ध्यान की सुध ही नहीं रही.

भगवान बोले- नारद! वह गृहस्थ किसान है. उसका मूल कार्य है खेती करके परिवार का भरण-पोषण करना.

अपना कार्य करते हुए भी वह मेरी सुध रखता है और श्रद्धा से यथासंभव पूजा-अर्चना करता है. जो अपना कर्म करते हुए मेरा जप करे वही सब से प्रिय भक्त है.

आप तपस्वी हैं. तपस्वी का हरिनाम स्मरण के सिवा कोई कार्य नहीं. आप सुमिरन करके अपना स्वाभाविक कार्य करते हैं. आपको अलग कार्य दिया तो स्मरण की सुध नहीं रही.

नारद सब समझ गए. उन्होंने भगवान के चरण पकडकर अपनी भूल के लिए क्षमा मांग ली.
दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय। जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे कोय।।

संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली

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2 COMMENTS

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