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मकर राशि में प्रवेश के साथ ही सूर्यनारायण उत्तर दिशा की तरफ प्रयाण करते हैं. इसे मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है. उत्तरायण का तात्पर्य है कि आकाश के देवता की कृपा से ह्दय में भी अनासक्ति करनी है.

संक्रांति के दिन स्नान एवं दान का विशेष रूप से महत्व कहा गया है. महर्षि याज्ञवल्क्य ने लिखा है कि संक्रांति को दान की भावना रखने वाले मनुष्य के प्रति देवतागण भी दयालु रहते हैं. उन्होंने तिल, कंबल और गुड़ के दान को विशेष रूप से महत्व दिया है.

संक्रांति से देवशक्तियां पुष्ट होनी आरंभ हो जाती हैं. इसलिए संक्रांति को हर व्यक्ति को स्नान के बाद अपने सामर्थ्य के अनुसार दान अवश्य करना चाहिए.

तीर्थस्थलों पर स्नान, गंगास्नान का विशेष महत्व है किंतु जिनके लिए यह संभव नहीं वह घर में भी मां गंगे का आह्वान करते हुए स्नान करें.

भारत के बहुत से हिस्सों में इसे तिल संक्रांति पर्व भी कहा जाता है. आज तिल का आहार एवं दही चूड़ा, खिचड़ी आदि के भोजन एवं दान की विशेष रूप से मान्यता है. क्या यह केवल एक परंपरा है या इसके पीछे एक बड़ा कारण है. यह सब मैं आपको विस्तार से बताउंगा.

मकर संक्रांति आलस्य का त्याग कर कर्म में जुट जाने का पर्व है. आज से शबी शुभ कार्य आरंभ हो जाते हैं. कृषक वर्ग इसे प्रसन्नता और उल्लास के साथ मनाता है. दान की महिमा तो अनंत है. हर व्यक्ति को अपने सामर्थ्य के अनुसार दान करना चाहिए.

मैं आपको आज वे दान बताउंगा जो हर व्यक्ति के सामर्थ्य में होते हैं. चूंकि यह पर्व कृषक वृति से संबद्ध है इसलिए इसमें मैं कृषि आदि से जुड़े दान की चर्चा करूंगा.

दान करने से व्यक्ति अपने इष्ट देवता एवं राशि के प्रबल ग्रहों का छोटा सा स्मरण करके उनसे सुख-समृध्दि का वरदान और कष्टों से निदान की कामना करनी चाहिए. इससे विशेष लाभ होता है.

क्यों मकर संक्रांति को तिल एवं खिचड़ी का उपयोग एवं दान की इतनी महिमा कही गई है? किस ग्रह के जातक किस देवता या किस ग्रह की किन मंत्रों से स्मरण करें एवं कौन सा दान करें यह मैं आपको राशि अनुसार बताउंगा.

संक्रांति को किन मंत्रों से दें सूर्य को जल, अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.

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