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संयोगवश एक दिन दमयंती की शरभंग ऋषि से भेंट हुई. दमयंती ने ऋषि से पूछा- हे ऋषिवर कृपा कर मुझे यह बताइए कि अपने पति तथा पुत्र से मेरा किस प्रकार से पुनः मिलन हो सकता है.

राज्य तथा अपने धन संपत्ति की किस प्रकार से पुनः प्राप्ति हो सकती है. इसके अतिरिक्त मैं यह भी जानने को उत्सुक हूं कि आखिर किस पाप के कारण भाग्य ने मुझे ऐसे दिन दिखाए हैं.

गणेशजी ने माता पार्वती से कहा- हे माता! दमयंती के वचनों को सुनकर शरभंग ऋषि ने कहा, हे दमयंती! सुनो मैं तुम्हारे हित की दृष्टि से कहता हूं. भाद्रपद मास और माघ मास की चतुर्थी जो संकष्ट चतुर्थी के नाम से विख्यात है.

यह व्रत महासंकट का नाश करने वाला और सभी मनोकानाओं को पूरा करने वाला है. इस दिन श्रद्धा से एकदंत गजानन का पूजन करने से सात माह के अंदर ही इच्छित फल की प्राप्ति हो जाती है.

गणेशजी ने पार्वतीजी से कहा- हे माता! दमयंती ने श्रद्धापूर्वक इस व्रत को भाद्रपद मास से आरंभ किया और सात महीने में ही उन्हें अपने पति तथा राज्य की फिर से प्राप्ति हुई और वे सुखमय जीवन बिताने लगे.

(यह कथा काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पंचांग से ली गई है. इसके अतिरिक्त भी कई गणेश कथाएं हैं जिनका श्रवण चतुर्थी को करने से गणेशजी प्रसन्न होते हैं. अगले पेज पर पढ़ें गणेशजी द्वारा जलते आंवे से बच्चे को बचाने वाली चतुर्थी की एक अन्य प्रचलित व्रत कथा)

अगले पेज पर तिल चतुर्थी की एक और प्रचलित व्रत कथा. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.

2 COMMENTS

    • आपके शुभ वचनों के लिए हृदय से कोटि-कोटि आभार.
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