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माता सीता की खोज में विभिन्न दिशाओं में वानर वीरों की टोली निकली. दक्षिण दिशा का प्रदेश वानरों के लिए सर्वाधिक अपिरिचित था. इसलिए उस दिशा में राजकुमार अंगद के नेतृत्व में हनुमानजी, जाम्वन्तजी, नल-नील आदि वीरों की टोली निकली.
इस टोली को एक स्थान पर जटायु के भाई गिद्धराज संपाति दिख गए. संपाति और वानरसेना के बीच वार्तालाप का प्रसंग अद्भुत है. इसे पहले भी सुना चुका हूं पर हनुमानभक्तों को इसमें इतना रस आता है कि वे बार-बार अनुरोध करते हैं.
संपाति के प्रसंग को आगे सुनाउंगा अभी देवताओं द्वारा हनुमानजी की परीक्षा के प्रसंग को ही बढ़ाते हैं.
संपाति ने बताया कि रावण देवी सीता को सुमद्र पार स्थित लंका ले गया है. रावण की माया और उसकी शक्तियों के बारे में संपाति को जितना पता था सब उन्होंने बता दिया.
संपाति ने लंका की दिशा और रावण के महल की जानकारी भी दी. पर लंकापुरी तो वहां से 100 योजन दूर थी सुमद्र के पार थी.
वानर वीर इस बात को लेकर चिंता करने लगे कि ऐसे विशाल समुद्र को आखिर लांघा कैसे जाए! बिना इसे पार किए लंका पहुंचना संभव नहीं.
जब तक स्वयं माता सीता के लंका में देखकर आश्वस्त न हो लें तब तक कैसे प्रभु श्रीराम को इस पर चढ़ाई के लिए कह सकते हैं.
अंगद सभी वीरों से उनकी छलांग लगाने की क्षमता की पूछताछ करने लगे.
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