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समुद्र ने रामभक्त को बिना विश्राम लगातार उड़ते देखा तो उसने अपने भीतर रहने वाले मैनाक पर्वत से कहा कि थोड़ी देर के लिए ऊपर उठ जाए ताकि उसकी चोटी पर बैठकर हनुमानजी थकान दूर कर लें.

समुद्र के आदेश से प्रसन्न मैनाक रामभक्त की सेवा का पुण्य कमाने के लिए हनुमानजी के पास गया अपनी सुंदर चोटी पर विश्राम का निवेदन किया.

हनुमानजी मैनाक से बोले-श्रीराम का कार्य पूरा किए बिना विश्राम करने का कोई प्रश्र ही नहीं उठता. उन्होंने मैनाक को हाथ से छूकर प्रणाम किया और आगे चल दिए.

लंका पहुंचते ही हनुमानजी का सामना लंका की रक्षक लंकिनी से हुआ. सुंदरकांड के ये सब प्रसंग भक्ति रस से सराबोर हैं.

सुंदरकांड में हनुमानजी की अपरिमित शक्तियों का वर्णण है और वे प्रभु के संकटमोचक बनते हैं.

कहते हैं जिस व्यक्ति ने अपने जीवनकाल में सुंदरकांड का एक बार भी पाठ न किया हो उसे तब तक मुक्ति नहीं मिलती जब तक वह इसे सुन न ले.

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