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ऋषि का शाप तत्क्षण प्रभाव में आ गया. वैद्यों ने बहुत चिकित्सा की लेकिन शाम्ब को रत्तीभर भी लाभ न हुआ. दुखी शाम्ब श्रीकृष्ण के सामने बिलखने लगा और क्षमायाचना कर उनसे अपना रूप वापस मांगने लगा.

श्रीकृष्ण ने कहा- तुमने ऋषि के तेज का अपमान किया है जिसका प्रभाव समाप्त करना घोर अनर्थकारी होगा. तुम ऋषि से भी ज्यादा तेजस्वी सूर्य की शरण में जाओ.

प्रभु के आदेश पर शाम्ब सूर्य भगवान की उपासना करने लगा. उसकी उपासना से प्रसन्न होकर सूर्य एक मूर्ति के रूप में आए और अपना विग्रह प्रदान किया.

शाम्ब ने उस विग्रह की विधिवत आराधना की. इस तरह शाम्ब कुष्ठ रोग से मुक्त हुए. कोणार्क के सूर्य मंदिर में वही विग्रह स्थापित है.

सम्राट हर्षवर्घन के दरबारी कवि मयूरभट्ट ने भी कुष्ठ रोग से पीड़ित हुए तो उन्होंने सूर्य आराधना के लिए सूर्य सप्तक की रचना की. प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने उन्हें कुष्ठ रोग से मुक्त कर दिया.

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