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भक्त के मन की पीड़ा भगवान तक पहुंच जाती है. वह तत्काल कोई न कोई उपाय करते हैं.

जनाबाई चिंता में बैठी थीं कि तभी एक वृद्ध महिला वहां आ पहुंची और पूछा कि आखिर किस चिंता में डूबी हो. जनाबाई ने सारी परेशानी बता दी.

उन्होंने कहा कि जाओ तुम कीर्तन का कमरा ठीक कर आओ तुम्हारे कपड़े मैं धो दूंगी.

जनाबाई को तो जैसे संजीवनी मिल गई. उन्होंने कहा, माता तुम कपड़े धोना मत. बस केवल देखभाल करती रहो, मैं तुरंत कमरा ठीक करके आती हूं.

जनाबाई को इतना भी अवकाश नहीं था, कि वे सोचतीं कि आखिर ये वृद्धा है कौन और उसके मन की व्यथा उसने इतनी आसानी से कैसे जान ली. वो तुरंत भागीं और कमरे की व्यवस्था करके उल्टे पांव लौटीं.

तभी उन्होंने दूर से देखा की वो वृद्धा जा रही थीं और सारे कपड़े धुल कर सूख रहे थे. कपड़े धुल भी गए, सूख भी गए. यह सारा काम इतनी जल्दी कैसे हो गया.

जनाबाई तुरंत उस वृद्धा के पीछे दौड़ीं और उन्हें रोकने की कोशिश की.

तभी उन्हें ठोकर लगी और गिर पड़ीं. थोड़ी देर के लिए दृष्टि ओझल हुई और वृद्धा नजरों के आगे से विलुप्त हो गईं लेकिन गीली मिट्टी पर उनके पैरों के निशान बने हुए थे.

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