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क्या हनुमानजी को जीवनमुक्ति का आदेश भी मिला है?

हनुमानजी को अमरत्व के वरदान तो बहुत मिले हैं, क्या उन्हें शरीर त्यागने की भी अनुमति मिली है? इस संदर्भ में एक प्रसंग है। एक बार सीताजी द्वारा दिए गए मणि औऱ रत्नों से विभूषित हार को पहनकर हनुमान जी श्रीराम के सम्मुख खड़े थे।

भगवान ने इनकी निष्ठा औऱ भक्ति से अत्यंत प्रसन्न होकर कहा- “हनुमान! मैं तुमसे अत्यंत प्रसन्न हूँ। तुम जो वर चाहो सो माँग लो। जो वर त्रिलोकी देवताओं को भी मिलना दुर्लभ है, वह भी मैं तुम्हें अवश्य दूँगा।”

हनुमानजी ने अत्यंत हर्षित होकर भगवान श्री राम के चरणों में प्रणाम करके कहा-“प्रभो! आपका नाम स्मरण करते हुए मेरा मन तृप्त नहीं होता। मैं आपका नाम स्मरण करता हुआ स्थित रहना चाहता हूँ। मेरा मनोवांछित वर यही है कि जब तक संसार में आपका नाम स्थित रहे तब तक मेरा शरीर भी विद्यमान रहे।”

इस पर भगवान श्रीराम ने कहा-” ऐसा ही होगा, तुम जीवनमुक्त होकर संसार में सुखपूर्वक रहो। कल्प का अंत होने पर तुम्हें मेरे सायुज्य की प्राप्ति होगी।”

इन प्रमाणों से ज्ञात होता है कि हनुमान जी न केवल चिरजीवी ही हैं बल्कि नित्यजीवी, इच्छा-मृत्यु तथा अजर-अमर भी हैं। भगवान श्रीराम से उन्हें कल्प के अंत में सायुज्य मृत्यु का वरदान प्राप्त है।

अतः उनकी अजरता-अमरता में कोई संशय नहीं है। जनश्रुतियों के अनुसार भी वे अपने भक्त-उपासकों को यदा-कदा जिस-तिस रूप में दर्शन देते हैं।

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