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जब इंद्रजीत ने श्रीराम पर नागपाश चलाया। श्रीराम नागपाश में इसलिए बंध गए क्योंकि उन्होंने नागराज वासुकी को वरदान दिया था कि वह उनके सम्मान की रक्षा करेंगे। श्रीहरि के वाहन गरूड़ ने नागपाश काटकर प्रभु को बंधन मुक्त कराया।

प्रभु नागपाश में बंध गए! गरूड़ को श्रीराम के भगवान होने पर संदेह हो गया। संदेह दूर करने गरुड़ ब्रह्मा के पास गए, ब्रह्मा ने शिव के पास और शिवजी ने रामभक्त काकभुशुंडी के पास भेजा। काकभुशुंडी ने गरूड़ का संदेह दूर किया और अपनी कथा सुनाई।

सतयुग के पूर्व के कल्प में काकभुशुण्डि का पहला जन्म अयोध्या में एक शूद्र के घर में हुआ। वह शिवजी के अनन्य भक्त थे किन्तु अज्ञानता में शिवजी के अलावा अन्य सभी देवताओं की निन्दा किया करते थे।

एक बार अयोध्या में घोर अकाल पड़ा। भुशुंडी को अयोध्या छोड़कर उज्जैन जाना पड़ा। उज्जैन में वह दयालु ब्राह्मण की सेवा में लगे और उन्हीं के साथ रहने लगे। वह ब्राह्मण भी शिव के अनन्य भक्त थे लेकिन वह भुशुंडी की तरह भगवान विष्णु की निन्दा कभी नहीं करते थे।

ब्राह्मण ने भुशुंडी को शिवजी का गूढ़ मन्त्र दिया। मन्त्र पाकर उसका अभिमान और बढ़ गया। अब तो वह भगवान विष्णु से जैसे द्रोह का ही भाव रखने लगा। भुशुंडी के इस व्यवहार से उसके गुरु अत्यन्त दुःखी थे। वह उसे श्रीराम की भक्ति का उपदेश देकर राह पर लाने की कोशिश करते थे। पर भुशुंडी सुनने को राजी न था।
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