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नंदा अपना वचन निभाने की बात पर अटल रही. उसने अपने बच्चे और सखियों को नीति का ज्ञान दिया और उनके हवाले अपना बच्चा छोड़कर बाघ के पास पहुंची.

गाय को वापस आया देखकर बाघ हैरान रह गया. गाय के पीछे उसका बछड़ा भी आ गया. बाघ ने कहा- ऐसा सत्यवादी पशु मैंने पहले कभी नहीं देखा. मैं तुम्हारी हत्या नहीं करुंगा.

बाघ ने उसे बहन कहकर, उसका नाम पूछा- उसने अपना नाम नंदा बताया तो राजा को पूर्वजन्म की बातें याद आने लगीं. नंदा ने उसे नीति का अनमोल ज्ञान दिया.

नंदा के प्रभाव से प्रभंजन शापमुक्त हो गया. नंदा की धर्मनिष्ठा को देखकर धर्मराज वहां प्रकट हुए. उन्होंने प्रसन्न होकर नंदा को दो वरदान दिए.

पहले वरदान से नंदा बछड़े के साथ स्वर्गलोक चली गई. दूसरा वरदान यह था कि जिस स्थान पर उसे धर्मराज के दर्शन हुए वहां सरस्वती नदी का नाम नंदा हो जाए. उस क्षेत्र में सरस्वती का एक नाम नंदा भी है.

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