भगवान जगन्नाथ प्रतिमा के हाथ-पांव क्यों नहीं बनाए जाते? श्रीक्षेत्र इतना पावन क्यों कहा गया? मंदिर से जुड़ी इतनी विचित्रताएं क्यों हैं? कौन बनते हैं यहां के पुजारी? संपूर्ण कथा जो आपने पहले न पढ़ी होगी.

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भगवान जगन्नाथ रथयात्रा और उनके ऐसे विचित्र विग्रह की कथा जितनी विस्तृत है उतनी ही रोमांचक. इस लीलाकथा के सूत्रधार बनते हैं नारद जी. श्रीराधाजी के लिए भगवान के निश्छल-निर्विकार प्रेम की पृष्ठभूमि से शुरू होती है जगन्नाथ रथयात्रा की अद्भुत कथा. राजा इंद्युम्न, गुंडीचा, विद्यापति, भीलराजा विश्वावसु और भगवान विश्वकर्मा द्वारा अधूरी मूर्ति निर्माण के रोमहर्षक प्रसंगों वाली भगवान जगन्नाथ की कथा प्रेम, भक्ति और समर्पण की सबसे मनोहर गाथाओं में से है.

भगवान जगन्नाथ की पूरी पढ़नी चाहिए. कथा लंबी है पर मैंने इसे संक्षिप्त करने का भरपूर प्रयास किया. बेशक कथा लंबी है पर इतनी सरस कि आप पूरा पढ़े बिना नहीं रह पाएंगे. जो भी पढ़ता है विभोर हो जाता है, और विस्तार से कहने का अनुरोध किए बिना नहीं रहता.

आशा है आप भगवान जगन्नाथ की कथा पढ़कर अनुभव करेंगे जैसे सबकुछ आपके सामने घटित हुआ है. ऐसा अनेक लोगों के साथ हुआ है. उन्होंने ऐसा मुझे फोन करके या मैसेज से बताया है.

यदि आप भगवान जगन्नाथ की कथा पसंद आए, तो पढने के बाद पोस्ट शेयर जरूर कर दीजिएगा. किसी अन्य भक्त तक पहुंच जाए. हमारे फेसबुक पेज का लिंक ऊपर है. वहां शेयर का विकल्प भी है. आइए भगवान जगन्नाथ, बलभद्रजी और बहन सुभद्राजी को नमन करते हुए कथा आरंभ करें.

एक बार भगवान श्रीकृष्ण सो रहे थे. निद्रावस्था में उनके मुख से अचानक निकला- “राधे”. पटरानियों ने इसे सुना. सहज स्त्रीभाव से वे सोचने लगीं कि हम प्रभु की इतनी सेवा करती हैं परंतु उन्हें ज्यादा राधाजी का ही स्मरण रहता है.

राधाजी के साथ प्रभु के प्रेम का रिश्ता कैसा था. यह अनुराग किस प्रकार का था? प्रभु ने उनके प्रति प्रेम का प्रदर्शन कैसे किया? स्वयं राधाजी भगवान के प्रति प्रेमभाव आखिर कैसे दिखाती थीं? रुक्मिणीजी एवं अन्य रानियों के मन में ये सब प्रश्न उठने लगे. पर उनकी जिज्ञासा शांत करे कौन?

बहुओं को सास और ननद की याद आई. सभी रोहिणीजी के पास पहुंची. उनसे राधारानी-श्रीकृष्ण के प्रेम व भगवान की ब्रज की लीलाएं सुनाने की प्रार्थना की.

बहुओं की जिद पर माता ने कथा सुनाने की हामी तो भर दी पर एक शर्त रखी.  रोहिणीजी ने कहा- सुनाउंगी तो सही पर श्रीकृष्ण या बलराम को इसकी भनक न मिले इसका प्रबंध करो. यदि उन दोनों ने कथा सुन ली तो वे फिर से व्रज चले जाएंगे. तुमसब मिलकर भी उन्हें रोक न पाओगी. फिर द्वारकापुरी कौन संभालेगा?

तय हुआ कि सभी रानियों रोहिणीजी के साथ एक गुप्त स्थान पर जाएंगी. वहां पर सारी श्रीकृष्ण लीला कथा कही-सुनी जाएगी. माता के शर्त अनुसार वहां कोई और न आए इसके लिए सुभद्राजी पहरा देंगी. भाभियों ने ननद को मनुहार करके इसके लिए मना लिया.

सुभद्राजी को आदेश हुआ कि स्वयं श्रीकृष्ण या बलराम भी आएं तो उन्हें भी अंदर न आने देना. माता ने कथा सुनानी आरम्भ की. सुभद्रा द्वार पर तैनात थी.

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माता रोहिणी ने भगवान की शैशव लीला का बखान शुरू किया. भगवान नवजात शिशु के रूप में कैसे लगते थे. किस प्रकार से सोते थे. कैसे बालसुलभ हठ करते थे. रोहिणीजी इतने भाव से सुना रही थीं जैसे कथा नहीं है सबकुछ उसी समय चल रहा है.

कथा सुनकर सुभद्राजी भी स्वयं को बालरूप में अनुभव करने लगीं. वह किसी नवजात शिशु के जैसी वहीं द्वारपर पड़ गईं. उन्हें कुछ होश ही न था.

थोड़ी देर में श्रीकृष्ण एवं बलराम वहां आ पहुंचे. सुभद्राजी को द्वार पर ऐसे देखा तो कुछ संदेह हुआ. बाहर से ही अपनी सूक्ष्मशक्ति द्वारा माता द्वारा वर्णित ब्रजलीलाएं आनंद लेकर सुनने लगे. बलरामजी भी कथा का आनंद लेने लगे.

पटरानियां तो डूबी ही थीं भगवान भी विभोर होकर सुध-बुध खो बैठे. ऐसे विभोर हुए कि मूर्ति के समान जड़ प्रतीत होने लगे. बड़े ध्यानपूर्वक देखने पर भी उनके हाथ-पैर दिखाई नहीं देते थे. सुदर्शन ने भी द्रवित होकर लंबा रूप धारण कर लिया.

तभी अचानक देवर्षि नारद का वहां प्रवेश हो गया. देवमुनि नारद भी भगवान के इस रूप को देखकर आश्चर्यचकित हो निहारते रहे. कोई सुध में ही न था.

कुछ समय बाद नारद की तंद्रा भंग हुई. प्रणाम करके भगवान से कहा- प्रभु! मेरी इच्छा है मैंने आज जो रूप देखा है, वह आपके भक्तजनों को पृथ्वीलोक पर चिरकाल तक देखने को मिले. आप इस रूप में पृथ्वी पर वास करें.

भगवान, नारदजी की बात से प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा- “तथास्तु”. कलिकाल में मैं इसी रूप में नीलांचल क्षेत्र में अपना स्वरूप प्रकट करुंगा. आपने जिस बालभाव वाले रूप में अंगहीन मुझे देखा है, मेरा वही विग्रह प्रकट होगा. आपको धैर्यपूर्वक उसकी प्रतीक्षा करनी होगी.

भगवान ने मेरी प्रार्थना स्वीकार कर ली यह बात सुनकर नारद गदगद हो गए. उन्होंने भगवान से पूछा- वह भाग्यशाली कौन होगा जिसे यह सुवअसर मिलेगा. आपतो जानते ही हैं मेरी कमजोरी है मेरा कौतूहल. इस बात को यदि न जान जाऊं तो मैं व्याकुल रहूंगा. प्रभु क्या मैं कलिकाल के आने तक व्याकुल रहूं?

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