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सत्राजित ने कृष्ण के मित्र सात्यकि के बेटे से सत्यभामा के विवाह का प्रस्ताव दिया. सात्यकि जानते थे कि सत्यभामा श्रीकृष्ण से प्रेम करती हैं. इसलिए सात्यकि ने प्रस्ताव ठुकरा दिया. इसके बाद सत्राजित का श्रीकृष्ण के प्रति बैर और बढ़ गया. लेकिन श्रीकृष्ण कोई बैर नहीं रखते थे.

वह सत्राजित और उनके वैभव की प्रशंसा किया करते थे. इससे सत्राजित को लगता था कि श्रीकृष्ण की नजर उसकी स्यंतक मणि पर है.

एकबार सत्राजित के भाई प्रसेनजित स्यंतक मणि को धारणकर शिकार खेलने गए. वहां एक शेर उन्हें मारकर खा गया लेकिन मणि उसके गले में ही फंस गई. रीक्षराज जामवंत ने सिंह को मारकर मणि छीन ली और अपने पुत्र को दे दिया.

प्रसेन और मणि के गायब होने से सत्राजित ने श्रीकृष्ण पर स्यमंतक चोरी का आरोप लगा दिया. चोरी का कलंक लगने से क्षुब्ध श्रीकृष्ण कुछ बहादुर लोगों के साथ प्रसेन को खोजने निकले. एक गुफा से निकलती चमक को देखकर उन्होंने साथियों से गुफा के बाहर प्रतीक्षा करने को कहा और खुद अंदर चले गए.

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