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इसके विष के कारण वह स्थान उजाड़-सा हो गया था. उसके विष से मुक्ति दिलाने के लिए श्रीकृष्ण एख कदंब के वृक्ष से कुंड में कूदे थे. कालिया के विष के कारण आसपास दूर-दूर तक घास भी नहीं उगती थी लेकिन केवल कदंब बच गया था.

कदंब के बचने के पीछे भी एक कथा है. महापराक्रमी गरुड़ की माता विनता एक शर्त हार गई थीं. इस कारण उन्हें अपनी सौत कद्रू की दासी बनना पड़ा था. सभी नाग कद्रू की संतानें हैं. (यह कथा आपको अन्य पोस्ट में सुनाउंगा)

माता को दासता से मुक्त कराने के लिए गरूड़ देवलोक से अमृत का कलश लेकर चले. वह इसी कदम्ब के वृक्ष के ऊपर कुछ देर के लिए विश्राम करने बैठे थे. अमृत ते कुछ छींटे कदंब पर पड़े इसी के प्रभाव से ही यह कदम्ब का वृक्ष बच गया था.

श्रीकृष्ण ने कालिया का मान मर्दन किया और उसे यहां से वापस रमणीक द्वीप पर जाने का आदेश दिया. प्रभु ने कहा कि गरूड़जी को तुम्हारे मस्तक पर बने मेरे चरण चिह्न दिखेंगे तो वह कोई अहित नहीं करेंगे. तुम निर्भय होकर अपने लोक में रहो.

प्रसन्न होकर कालिया और उसकी पत्नियों ने श्रीकृष्ण का दिव्य माला, वस्त्र, आभूषण और महामूल्य मणि से शृंगार किया. फिर उत्तम गंध आदि से उनकी आरती की. कालिया यमुना को त्यागकर चला गया.

संकलन व संपादनः प्रभु शरणम्

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