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इन्द्र की से ब्रज मण्डल पर प्रचण्ड गड़गड़ाहट, मूसलाधार बारिश एवं भयंकर आँधी-तूफ़ान चलने लगा. लगता था कि अब ब्रज का विनाश हो जाएगा. ब्रजवासी दुखी और भयभीत थे और श्रीकृष्ण से बताया कि इंद्र को कोप से यह सब हो रहा है.

श्रीकृष्ण ने गोपों से कुटुंबजनों और गोधन के साथ गोवर्धन की शरण में चलने को कहा. उन्होंने हमारी पूजा स्वीकार की है ,वही रक्षा करेंगे. ब्रज मण्डल गोवर्धन के नीचे जमा हुआ तो श्रीकृष्ण ने खेल-खेल में अपने बाएं हाथ की छोटी उंगली पर गोवर्धन को उठा लिया.

श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र आदेश दिया कि पर्वत के ऊपर विराजो और सम्पूर्ण जल को सोख लो. इंद्र के आदेश पर सात दिनों तक प्रलय मेघ जल बरसाते रहे. श्रीकृष्ण ने सात दिन तक गिरिराज पर्वत को उठाये रखा.

सभी ब्रजवासी आनन्दपूर्वक उसकी छ्त्रछाया में सुरक्षित रहे. सुदर्शन ने ब्रजमंडल में जल का प्रवेश होने नहीं दिया इससे उनके घऱ सुरक्षित रहे. इन्द्र का अभिमान टूट चुका था. उन्होंने मेघों को रोका और प्रभु की स्तुति कर क्षमा मांगी.

धूप निकली तो श्रीकृष्ण ने सबको पर्वत की छतरी से बाहर निकल जाने को कहा. सबसे निकलने पर प्रभु ने पर्वत को वापस उनके स्थान पर रख दिया. ब्रजवासियों ने मंगलगान गाया और वृद्धों ने श्रीकृष्ण की आरती उतारी और आशीष दिया.

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