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वसुदेव अपना वचन पूरा करने के लिए संतान को लेकर कंस के पास आए और उसे सौंप दिया. कंस उनकी सत्यवादिता से खुश हो गया. उसने बालक लौटाते हुए कहा- देवकी के गर्भ से जन्मी आठवीं संतान से भय है. इसलिए आप इसे ले जाइए.
वसुदेव उस बालक को लेकर वापस लौट आए. नारदजी कंस के पास आए और कहा- तुमने देवकी की संतान लौटाकर अच्छा नहीं किया. न जाने कौन सी संतान आठवीं कही जाए.
नारद ने भूमि पर आठ रेखाएं खींचकर समझाया कि फेर तो वहां से है जहां से गिनती आरंभ किया जाए. इनमें से कोई भी रेखा आठवीं हो सकती है. नारदजी ने यह भी बता दिया कि सभी देव-देवी भी गोप-गोपियों के रूप में व्रज में जन्म ले रहे हैं.
कंस का माथा ठनका. उसे ज्ञात था कि पूर्वजन्म में वह कालनेमि असुर था. श्रीहरि ने उसका वध किया था. उसने तत्काल वसुदेव और देवकी को कारागार में डाल दिया. अपनी निगरानी में देवकी की आठों संतानों का जन्म और हत्या करना चाहता था.
कंस ने उग्रसेन को भी कारागार में डाल दिया औऱ शासन करने लगा. एक-एक करके वह देवकी की संतानों का वध करता गया. देवकी के सातवें गर्भ के रूप में स्वयं शेषजी आए. पहले वह श्रीराम के अनुज लक्ष्मण रूप में आए थे. इस बार अग्रज हुए.
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Dhanayvad
अच्छा लगा ।