सावन शिव परिवार की विशेष उपासना का अवसर है. आज भगवान भोलेनाथ की एक ऐसी कथा जिसमें उन्हें भक्त ने ही छल लिया. उस छल से भोलेनाथ को निकालने के लिए कई देवों को कितनी लीलाएं करनी पड़ी.

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देवों के देव महादेव ऐसे ही थोड़े कहे जाते हैं भोलेनाथ.  भाव में भरकर भोलेभंडारी किस भक्त को क्या दे बैठें, कोई नहीं जानता. जगदंबा स्वयं भोलेनाथ के इस भोले स्वभाव से कई बार रुष्ट हो जाती हैं.  आज आपके लिए लेकर आया हूं भोले बाबा की एक ऐसी ही कथा. एक भक्त के छल से दुखी भोलेनाथ अपने ही प्रियलोक को नष्ट करने चल पड़े.

ब्रह्मा ने एक भक्त को ऐसा वरदान दे दिया कि वह भक्त स्वयं को ही भोलेनाथ समझने लगा. भक्त ने देवाधिदेव भोलेनाथ के साथ छल किया. उस छल को तोड़ने के लिए अनेक देवताओं को अनेक लीलाएं करनी पड़ीं. गणपति को तो कई छल करने पड़े, बहुरूपिया तक बनना पड़ा. पढ़िए, बड़ी मजेदार कथा है भोलेनाथ की सरलता की.

कथा आरंभ करने से पहले एक छोटी सी बात और कहूंगा. बात मेरी है पर आपके फायदे की है.

शिव-परिवार से जुड़े रहस्यों से भरे पड़े हैं शास्त्र. ऐसी रहस्यकथाएं, ऐसी लीलाएं कि सुनकर मन आनंदित हो जाए. चतुर्मास में तो नारायण योगनिद्रा में रहते हैं. इस अवधि में शिवजी और उनके गण ही सृष्टि व्यवस्था देखते हैं. इनमें से सावन सबसे विशेष है. जिसने चतुर्मास में स्वयं को भक्तिभाव में न रखा उसके सालभर के सारे दान-पुण्य, भजन-पूजन सबका फल अधूरा रहा समझो.  आपको यह अवसर नहीं गंवाना है.  इसके लिए छोटा सा काम करिए.

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कथा आरंभः

यह कथा कई पुराणों में आती है. काशी का त्याग भोलेनाथ को करना पड़ा था और स्वयं देवाधिदेव काशी को नष्ट करने को तैयार हो गए थे.  गणेशजी की चतुराई से काशी बची भी और पुनः शिवजी को प्राप्त भी हुई.

मनु कुल में उत्पन्न राजर्षिश्रेष्ठ राजा रिपुंजय ने अविमुक्त क्षेत्र में कठोर तप आरंभ किया. उनके इस घोर तप से ब्रह्माजी प्रसन्न हो गए और राजा को दर्शन दिए.

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ब्रह्माजी प्रकट हुए और रिपुंजय से कहा- रिपुंजय तुम संपूर्ण वसुंधरा का पालन करो. तुम्हारे धर्मनिष्ठा पूर्ण शासन से प्रसन्न होकर देवतागण स्वर्ग के रत्न-पुष्पादि से इस वसुंधरा को सुशोभित करते रहेंगे. मैं तुम्हें दिव्य सामर्थ्य प्रदान करूंगा.

इसके साथ ही साथ नागराज वासुकि अपनी परमसुंदरी कन्या अनंगमोहिनी से तुम्हारा विवाह करेंगे जो दिव्य शक्तियों से संपन्न है. पत्नी के साथ तुम धर्मपूर्वक धरा का शासन करो. तुम्हारा नाम दिवोदास प्रसिद्ध होगा.

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