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एक शिवमंदिर के पुजारीजी को भोलेनाथ ने सपने में दर्शन दिए औऱ कहा कि कल सुबह नगर के सभी भक्तों, विद्वानों, दान-पुण्य करने वालों और साधु-महात्माओं को मंदिर में जमा करो.

पुजारी ने शहर में मुनादी करा दी कि महादेव का ऐसा आदेश है. शहर के सारे गणमान्य लोग अगली सुबह मंदिर पहुंचे. पूजा-अर्चना हुई और पुजारीजी ने विस्तार से स्वप्न बताया

तभी मंदिर में एक अद्भुत तेज प्रकाश हुआ. लोगों की आंखें चौंधिया गईं. जब प्रकाश कम हुआ तो लोगों ने देखा कि शिवलिंग के पास एक रत्नजड़ित सोने का पात्र है. उसके रत्नों में दिव्य प्रकाश की चमक थी.

उसपर लिखा था कि सबसे बड़े दयालु और पुण्यात्मा के लिए यह उपहार है. पुजारीजी ने वह पात्र सबको दिखाया. वह बोले-प्रत्येक सोमावार को यहां विद्वानों की सभा होगी. जो स्वयं को सबसे बड़ा धर्मात्मा सिद्ध कर देगा, यह स्वर्णपात्र उसका होगा.

देशभर में चारों ओर यह समाचार फैल गया. दूर- दूर से तपस्वी, त्यागी, व्रती, दान-पुण्य करने वाले लोग काशी आने लगे. एक तपस्वी ने कई महीने लगातार चन्द्रायण व्रत किया था. वह उस स्वर्णपात्र को लेने आए.

जब स्वर्णपात्र उन्हें दिया गया, उनके हाथ में जाते ही वह मिट्टी का हो गया. उसकी ज्योति नष्ट हो गई. लज्जित होकर उन्होंने स्वर्णपात्र लौटा दिया. पुजारी के हाथ में जाते ही वह फिर सोने का हो गया और रत्न चमकने लगे.

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