दशरथ ने कहा- सारे मेघ इंद्र के अधीन हैं लेकिन वे अयोध्या पर नहीं बरस रहे. सूखे से प्रजा त्रस्त है. इंद्र ने दशरथ को बताया कि ऐसा रोहिणी नक्षत्र पर शनि की दृष्टि के कारण हो रहा है.

इंद्र बोले- आप देवों के मित्र हैं. मैं आपका अहित क्यों चाहूंगा. आप शनि को कहें कि रोहिणी पर से अपनी दृष्टि हटा ले, तभी बारिश होगी.

दशरथ रथ पर सवार होकर शनि के पास पहुंचे. शनि ने क्रोधभरी दृष्टि से दशरथ को देखा तो उनके रथ के पहिए टूट गए. वह घोड़े समेत धरती पर गिरने लगे.

गरुड़पुत्र जटायु ने अपने पंख फैलाकर दशरथ को सहारा दे दिया. इस तरह उनकी प्राण रक्षा हुई. इस तरह दशरथ और जटायु में मित्रता हुई. दशरथ ने फिर से रथ बनाया और शनि को चुनौती देने पहुंचे

शनि को बड़ा आश्चर्य हुआ कि उनकी क्रोधदृष्टि को झेलकर कोई इंसान फिर से उन्हें चुनौती देने कैसे आ गया है. शनि समझ गए कि यह कोई पुण्यात्मा और तेजस्वी मानव है. इस पर क्रोध नहीं करना चाहिए.

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