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ब्रह्माजी से भेंट के पश्चात् देवी गंगा लौटने लगीं तो रास्ते में वसुओं से उनकी भेंट हो गई. वसुओं को ब्रह्मापुत्र महर्षि वसिष्ठ ने गौचोरी का प्रयास करने के कारण पृथ्वीलोक पर जन्म लेने का शाप दे दिया था.
वसुओं द्वारा क्षमा याचना पर वशिष्ठ ने कहा था कि आठों वसु गंगा के गर्भ से जन्म लेंगे. गंगा सात को जन्म के साथ ही शापमुक्त करेंगी लेकिन आठवें वसु की मुक्ति आसानी से नहीं होगी.
वसुओं ने गंगाजी से विनती की कि वशिष्ठ के शाप से उनके तेज क्षीण हो रहा है अतः वह जल्द अपने गर्भ से जन्म देकर उनका उद्धार करें.
गंगा ने जन्म होते ही मुक्ति देना स्वीकार कर लिया जिसके बदले उन आठों वसुओं ने अपने-अपने अष्टमांश से मृर्त्यलोक में एक पुत्र छोड़ देने की प्रतिज्ञा की.
राजा प्रतीप संतानहीन थे. उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए गंगा के द्वार पर घोर तप आरंभ किया. वह चाहते थे कि गंगा उनके घर में जन्म लें. तप से प्रसन्न होकर गंगा प्रकट हुईं.
गंगा ने राजा को बताया कि वह संतान रूप में नहीं आ सकतीं. प्रतीप ने गंगा से कहा कि यदि संतान रूप में आप प्रकट होने में असमर्थ हैं तो मेरे भावी पुत्र की पत्नी बनने का वचन दें. इससे मेरी कामना भी पूरी हो जाएगी. गंगा ने स्वीकार कर लिया.
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