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इसी बीच दुर्वासा मुनि देवराज स्वर्गलोक की ओर चले जा रहे थे. वैभव के घमंड में चूर इंद्र अपने ही मद में थे. विनयशीलता लोप हो चुकी थी. अपमान में भरे इंद्र ने दुर्वासा का अपमान कर दिया.

दुर्वासा के कोप का तो ठिकाना ही न रहा. वह जानते थे कि लक्ष्मी की कृपा के कारण इंद्र को इतना मद हो गया है. दुर्वासा ने शाप दिया कि जिस वैभव पर आपको इतना घमंड है उसे पूरी तरह खो देंगे.

देवताओं को सत्य आदि शील तथा पवित्रता से रहित होने के बाद भी जो लक्ष्मी अभी तक किसी तरह उनके पास टिकी हुईं थी. दुर्वासा के श्राप के बाद वह अचानक ही लोप हो गईं.

लक्ष्मी दैत्यों के पास चली गई थी और देवगण श्रीविहीन हो गए. देवता तो क्या सारे संसार में सब कुछ बंजर हो गया सारा वैभव, सुख सुविधा, कारोबार, शुभ लाभ सब समाप्त. अकाल, दुर्भिक्ष और पड़ने लगे.

इस घटना से देवतागण तो बहुत ही कष्ट में आ गए. उन्हें बिन प्रयास के सुख सुविधा की आदत जो पड़ गयी थी. उधर अभाव के चलते हवन पूजन और दूसरे कार्यों में भी अभाव झलकने लगा.

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