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भगवान बोले- महाराज धृतराष्ट्र पिछले जन्म में भी आप एक राजा थे. आपके राज्य में एक तपस्वी ब्राह्मण रहते थे. ब्राह्मण के पास हंसों का एक जोड़ा था जिसके चार बच्चे थे. ब्राह्मण को उन हंसों से अपने संतान के जैसा लगाव था.

ब्राह्मण को तीर्थयात्रा पर जाना था लेकिन हंसों की चिंता में वह जा नहीं पा रहे थे. उसने अपनी चिंता एक साधु को बताई.

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साधु ने कहा- तीर्थ में हंसों को बाधक बताकर हंसों का अगला जन्म खराब क्यों करते हो. राजा प्रजापालक होता है. तुम और तुम्हारे हंस दोनों उसकी प्रजा हो. हंसों को राजा के संरक्षण में रखकर तीर्थ को जाओ.

आप एक प्रजापालक राजा थे. इसलिए ब्राह्मण को यह बात जम गई. वह आपके पास आया और अपनी सारी परेशानी कह सुनाई. आपने ब्राह्मण के तीर्थ से लौट आने तक हंसों की रक्षा का दायित्व स्वीकार लिया.

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