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बात आगे बढती कि तभी वहां एक बहुत बुजुर्ग मुनि सिरपर चटाई ओढे, माथे पर सफेद तिलक लगाए आ पहुंचे.

शरीर तो जर्जर हो गया था लेकिन उनका मुख तेज के कारण चमक था. उनके सीने पर बालों का एक चक्राकार गुच्छा था.

इंद्र ने मुनि को नमस्कार कर बैठने का स्थान दिया. बटुक ने पूछा- हे महामुने आप कौन हैं? यह आपके सीने पर बालों का ऐसा विचित्र सा गुच्छा क्यों हैं? आप जैसे तेजस्वी मुनि ने यह सिर पर चटाई क्यों ओढ रखी है?

मुनि बोले- बटुक, जीवन के असंख्य बरस बीत जाने पर भी मैंने न तो कोई रहने का ठिकाना बनाया, न विवाह करके घर बसाया और न ही कोई आजीविका खोजी. अब मैं धूप, बारिश, सर्दी सबसे बचने के लिए हमेशा ही यह चटाई ओढकर चलता हूं.

मेरे सीने पर बालों का जो गुच्छा है इसके कारण मुझे लोमश कहते हैं.यही मेरी आयु का प्रमाण भी है. एक इंद्र के पतन होने पर सीने का एक रोआं गिर जाता है. दो कल्प समाप्त होने पर पिछले कल्प के जब सारे ब्रह्मा खत्म हो जाएंगे तब मेरा भी अंत हो जाएगा.

लोमश कहते रहे- बटुक, सबको जाना है. असंख्य ब्रह्मा आए और गए फिर मैं घर, पत्नी, संतान, धन की इच्छा क्यों करुं? भगवत प्राप्ति ही मेरे लिए संपत्ति और मोक्ष का मार्ग है. यह कहकर लोमश मुनि अंतर्धान हो गए. बटुक भी चले गए.

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