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देवी से शक्तियां प्राप्तकर मदासुर लौटा तो शुक्राचार्य ने उसे असुरों का राजा नियुक्त कराया. मदासुर ने पहले सम्पूर्ण धरती पर अपना साम्राज्य स्थापित किया. फिर स्वर्ग पर चढ़ाई की. इन्द्र को जीतकर वह स्वर्ग का भी शासक बन बैठा.

शुक्राचार्य के सुझाव पर मदासुर ने एक अन्य असुर राजा प्रमदासुर की कन्या सालसा से विवाह किया. उससे उसे तीन पुत्र हुए. देवी के वरदान के प्रभाव से उसने शूलपाणी भगवान शिव को भी टिकने न दिया.

सर्वत्र असुरों का क्रूरतम शासन चलने लगा. पृथ्वी पर स्वाहा, स्वधा और वषटाकार जैसे समस्त धर्म-कर्म लुप्त हो गए. देवताओं एंव मुनियों के दुख की कोई सीमा न रही. सर्वत्र हाहाकार मच गया.

चिन्तित देवता सनत्कुमार के पास गए तथा उनसे उस असुर के विनाश एवं फिर से धर्म-स्थापना का उपाय पूछा. सनत्कुमार ने कहा -देवगण आप लोग श्रद्धा-भक्तिपूर्वक भगवान एकदन्त की उपासना करें. वही आप लोगों का मनोरथ पूर्ण करेंगे.

महर्षि के उपदेशानुसार देवगण भगवान एकदन्त की उपासना करने लगे. तपस्या के सौ वर्ष पूरे होने पर मूषक के वाहन पर सवार भगवान एकदन्त प्रकट हुए तथा वरदान मांगने को कहा.

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