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वृषोत्सर्ग कराने वाले ब्राह्मण की उपस्थिति में इनके माथे पर शुभ तिलक लगाकर, बछियाओं से विवाह कराने के बाद जांघों पर त्रिशूल का निशान बनाकर और उसके बाद धूप दीप और नैवेद्य के साथ बताई गयी तिथि पर पूजा करके बंधनमुक्त कर देना चाहिए.

वशिष्ठ जी ने कहा- इसकी महिमा स्पष्ट करने के लिए मैं आपको कथा सुनाता हूं. त्रेता युग में विदेह नगर में एक ब्राह्मण रहता था- धर्मवत्स. पुरोहित का कार्य करके उसका जीवन चलता था. धर्मवत्स वृषोत्सर्ग कराने में निपुण था.

एक बार जब पितृपक्ष आने वाला था तो उसने यजमानों के लिए जंगल जाकर कुश इकट्ठा करने की सोची. वन में पलाश के पत्ते तथा कुश एकत्र करने लगा. पलाश के बढिया पत्ते और अधिक कुश की आशा में वह वन के थोड़ा भीतर चला गया.

अचानक धर्मवत्स ने देखा कि चार बहुत ही सजीले और सुंदर वस्त्रों से सुसज्जित पुरुष खड़े थे. धर्मवत्स मूर्तिवत खड़ा ही रह गया, वह यह नहीं पूछ पाया कि इस सघन वन में वे चारो कौन हैं, किस उद्देश्य से आये और क्या कर रहे हैं.

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