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विष्णुजी को भी सभी देवताओं के साथ अपने शरीर पर बैठा देखकर गयासुर ने कहा- आप सब और मेरे आराध्य श्रीहरि की मर्यादा के लिए अब मैं अचल हो रहा हूं. घूम-घूमकर लोगों के पाप हरने का कार्य बंद कर दूंगा.
लेकिन मुझे चूंकि श्रीहरि का आशीर्वाद है इसलिए वह व्यर्थ नहीं जा सकता इसलिए श्रीहरि आप मुझे पत्थर की शिला बना दें और यहीं स्थापित कर दें.
श्रीहरि उसकी इस भावना से बड़े खुश हुए. उन्होंने कहा- गय अगर तुम्हारी कोई और इच्छा हो तो मुझसे वरदान के रूप में मांग लो.
गय ने कहा- नारायण मेरी इच्छा है कि आप सभी देवताओं के साथ अप्रत्यक्ष रूप से इसी शिला पर विराजमान रहें और यह स्थान मृत्यु के बाद किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठानों के लिए तीर्थस्थल बन जाए.
श्रीविष्णु ने कहा- गय तुम धन्य हो. तुमने लोगों के जीवित अवस्था में भी कल्याण का वरदान मांगा और मृत्यु के बाद भी मृत आत्माओं के कल्याण के लिए वरदान मांग रहे हो. तुम्हारी इस कल्याणकारी भावना से हम सब बंध गए हैं.
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