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श्री शिवमहापुराण में घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा इस प्रकार बतायी गई है– अद्भुत तथा नित्य परम शोभा सम्पन्न देवगिरि नामक पर्वत दक्षिण दिशा में अवस्थित है.
देवगिरी के समीप में भारद्वाज कुल में उत्पन्न सुधर्मा नामक एक ब्रह्मवेत्ता ब्राह्मण निवास करते थे. उनकी पत्नी सुदेहा भी उत्तम विचारों वाली स्त्री थी. ईश्वर के प्रति भक्तिभाव रखती हुई पति की सेवा करती थी.
स्वयं सुधर्मा शिवभक्त थे और शिवजी की आराधना में लगे रहते थे. सुधर्मा और सुदेहा को कोई सन्तान न थी इसलिए दोनों बहुत व्यथित रहते थे. सुधर्मा से ज्यादा दुखी सुदेहा रहती थी क्योंकि पड़ोसी महिलाएं उसे बांझ होने का ताना देती थीं.
पति-पत्नी ने संतान प्राप्ति के सारे उपाय किए लेकिन कोई लाभ न हुआ. दु:खी सुदेहा को और कोई राह नहीं सूझी तो उसने सुधर्मा से कहा कि वह उसकी छोटी बहन घुश्मा के साथ विवाह कर लें.
सुधर्मा ने पत्नी को बहुत समझाया कि मैं अनुभव से कहता हूं कि अभी अपनी बहन से प्यार करती हो, इसलिए विवाह करा रही हो, किन्तु जब इसे पुत्र उत्पन्न होने के बाद तुम्हें ईर्ष्या होगी.
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