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घुश्मा ने भक्तिभाव से भगवान भोलेनाथ की स्तुति की और कहा- प्रभु सुदेहा मेरी बड़ी बहन है. आप उसे क्षमा कर दें. महादेव ने कहा- सुदेहा ने तुम्हारा बड़ा अनिष्ट किया है फिर तुम उसका उपकार क्यों करना चाहती हो?

घुश्मा हाथ जोडकर प्रार्थना करने लगी– देव! आपके दर्शन मात्र से सारे पातक भस्म हो जाते हैं. हे भोलेनाथ! जो कुकर्म करने वाला है वह अपने कर्म में लगा रहे मैं क्यों अनिष्ट का विचार करूँ? मुझे तो अपकार करने वाले का भी उपकार करना अच्छा लगता है.

सदाशिव घुश्मा के भक्तिपूर्ण और विकाररहित स्वभाव से अत्यन्त प्रसन्न हो उठे. महेश्वर ने कहा– ‘घुश्मा! मैं तुम्हें कोई वर अवश्य दूंगा. तुम जो चाहे वर मांगो.

घुश्मा ने कहा– महादेव! यदि आप मुझे वर देना चाहते हैं तो लोगों की रक्षा और कल्याण के लिए आप यहीं सदा निवास करें और आपकी ख्याति मेरे ही नाम से संसार में होवे.

घुश्मा से प्रसन्न होकर महादेव ने कहा- मैं मानवकल्याण के लिए हमेशा यहां निवास करूंगा. मेरा ज्योतिर्लिंग घुश्मा के ईश्वर घुश्मेश्वर के नाम से संसार में प्रसिद्ध होगा.

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