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बीरबल जानते थे कि ईश्वर के चमत्कार देखकर भी अकबर के आंख पर पड़ी पट्टी नहीं हटेगी. इसलिए कुछ और रास्ता खोजना पड़ेगा. बीरबल ने एक युक्ति लगाई.

उन्होंने अकबर को एक दिन यमुना में परिवार समेत नौका विहार करने को राजी किया. वहां कुछ बड़ी नावों की व्यवस्था पहले से ही करवा दी थी. बरसात के दिन थे. यमुना लबालब भरी थी. पानी उछाल मार रहा था.

जिस नाव में बीरबल ने अकबर को बिठाया उसी नाव में एक तरफ एक दासी अकबर के दुधमुंहे बेटे के साथ बैठी.

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बीरबल ने अकबर के बेटे की शक्ल का एक मोम का पुतला भी बनवाया. उसे हुबहू राजकुमार जैसे कपड़े पहना दिए गए. पुतला दूर से एकदम शहजादे जैसा दिख रहा था.

दासी को बीरबल ने सब कुछ सिखा दिया था. नाव यमुना के बीच पहुँची. लहरों पर नाव हिचकोले लेने लगी. तभी दासी ने ऐसा स्वांग रचा जैसे शहजादा उसकी गोद से उछलकर पानी में जा गिरा हो. उसने मोम के पुतले को नदी में गिराकर शोर मचाना शुरू कर दिया.

“शहजादे नदी में गिर गए.” “कोई शहजादे को बचाओ, वह नदी में गिर गए.”छाती पीटते हुए वह ऐसा चिल्लाती रही. सबका ध्यान उधर गया.  अकबर ने उसकी चीख सुनी. मोम के पुतले का कपड़ा पानी पर दिख रहा था.

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बादशाह समझ गया कि उसका शहजादा नदी में गिर गया है. उसे तुरंत न बचाया गया तो डूब मरेगा.

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1 COMMENT

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