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दुर्वासा ने कहा- कन्या तुम सोलह वर्ष पक्षीरूप में जीवित रहकर चार पुत्रों को जन्म दोगी. उसके बाद इंद्र के अंश के बाण से घायल होकर प्राण त्याग दोगी तो पूर्वरूप को प्राप्त हो जाओगी.
दुर्वासा के शाप के प्रभाव से अप्सरा वपु ने गरुड़वंश में केक पक्षी के रूप में जन्म लिया. उसका विवाह मंदपाल के पुत्र द्रोण से हुआ. सोलह वर्ष की आयु में उसने गर्भ धारण किया. उसी काल में महाभारत का युद्ध हुआ. वह उस युद्ध को देखने गई. आकाश में विचरते समय अर्जुन का शत्रुपक्ष पर चलाया एक बाण उड़ता हुआ उस पक्षी को जा लगा. इससे उसका गर्भ गिर गया.
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वह अप्सरा स्वरूप को पाकर देवलोक पहुंची. उसके अंडे जब पृथ्वी पर गिरे उसी समय एक विशाल हाथी के गले में पड़ा घंटा भी कटकर जमीन पर गिरा. दैवयोग से घंटा उन अंडों पर ऐसा गिरा कि अंडे उसके नीचे ढंक गए. अंडों से बच्चे निकले. शमीक मुनि वहां से गुजर रहे थे. शमीक ने घंटों के नीचे से मानवों की भाषा सुनी तो हटाया, वहां उन्हें पक्षी शावक दिखे.
शमीक को यह जानकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि ये पक्षी, मानवों की भाषा में वार्तालाप कर सकते थे.
मुनि ने उससे पूछा- तुम लोग कौन हो? तुम क्या अपने पूर्व जन्म का वृत्तांत बता सकते हो?
पक्षियों ने कहा- मुनिवर प्राचीन काल में विपुल नामक एक तपस्वी थे. उनके सुकृत और तुंबुर नाम के दो पुत्र हुए. हम चारों सुकृत के पुत्र हुए. एक दिन इंद्र ने पक्षी के रूप में मेरे पिता के आश्रम में पहुंचकर मनुष्य का मांस मांगा. हमारे पिता ने हमें आदेश दिया कि हम पितृ-ऋण चुकाने के लिए पक्षीरूप में उपस्थित इंद्र का आहार बनें.
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हमने यह बात सुनी तो भयभीत हो गए. हमने पिता की बात मानने से मना कर दिया. इसपर क्रोधित पिता ने हमें पक्षी रूप में जन्म लेने का श्राप दे दिया और स्वयं उस पक्षी का आहार बनने के लिए तैयार हो गए.
इंद्र प्रसन्न होकर प्रकट हो गए. हमारे पिता से मित्रता करके वह देवलोक को चले गए. हमने अपने पिता से कहा कि हम मानवदेह के प्रति आसक्ति के कारण आपकी आज्ञा का पालन नहीं कर सके. हम पर कृपा करके हमें शाप से मुक्ति का मार्ग बताइए.
पिता ने शाप मुक्ति का हमें यही उपाय बताया कि तुम सब पक्षीरूप में होकर भी बहुत ज्ञानी रहोगे. कुछ दिन विंध्याचल में जाकर निवास करो. महर्षि जैमिनी तुम्हारे पास अपनी शंकाओं का निवारण करने के लिए आएंगे. उनकी शंका का निवारण करते ही तुम शापमुक्त हो जाओगे. इसी कारण हम पक्षी बन गए है.
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यह सुनकर शमीक ने उन पक्षियों को तत्काल विंध्याचल में चले जाने का परामर्श दिया.
इतनी कथा सुनाकर मार्कंडेयजी बोले- हे जैमिनी तुम विंध्याचल जाओ, उन पक्षियों से अपनी शंका का समाधान कर लो. इस प्रकार उन ऋषिपुत्रों का भी उद्धार हो जाएगा.
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जैमिनी के प्रश्नों का क्या उत्तर दिया पक्षियों ने. क्यों देवता मनुष्य रूप में आते हैं. पांचाली को पांच पति क्यों मिले. क्या पांचों पांडव इंद्र के ही अंश है.. यब सब जानें अगले पेज पर…
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