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जैमिनी विंध्याचल को गए. वहां पर उन्हें उच्च स्वर में वेदपाठ करते पक्षी दिखे तो जैमिनी ने समझ लिया कि इन्हीं पक्षियों से उनकी शंका का समाधान होगा. जैमिनी ने उनसे अपने चारों प्रश्न पूछे.

पक्षियों ने कहा- मुनिवर संसार में जब-जब पाप बढ़ जाते हैं तब-तब पापियों को दंड देने के लिए भगवान मानव रूप में अवतरित होते हैं. ऐसा वह देवी पृथ्वी का बोझ निवारण करने के लिए करते हैं.

प्रजापति त्वष्टा के पुत्र त्रिशीर्ष अपने तीन मुखों से वेदोच्चार करते थे. तीन मुखों से वह तीनरस का पान करते थे. देवगुरू बृहस्पति के इंद्र से रुष्ट हो जाने पर त्वष्टा पुत्र विश्वरूप को पुरोहित बनाकर इंद्र ने यज्ञ किया. उनके प्रयासों से देवताओं ने यद्ध में विजय प्राप्त की. इंद्र ने विश्वरूप से कहा कि ऐसा उपाय करें कि देव-असुर का झगड़ा ही खत्म हो जाए. असुरों का पूर्णतः नाश हो जाए.

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विश्वरूप ने ऐसा संकल्प करके यज्ञ शुरू किया. आहुतियां डाली जाने लगीं और दैत्य कुल का नाश तय हो गया. एक दैत्य वेश बदलकर विश्वरूप के पास आया और उनसे कहा- दैत्य और देवता दोनों एक ही रक्त के अंश है. क्या आप एक भाई के कहने पर दूसरे का संपूर्ण विनाश करने के कारण बनेंगे. ऐसा उचित नहीं.

विश्वरूप को बात सही लगी. उन्होंने पुष्टि के लिए आहुतियां दैत्यों के लिए भी डालनी शुरू कीं. इससे इंद्र क्रोधित हो गए. इंद्र ने उनका अपमान किया तो विश्वरूप ने समझाया कि मेरे अपमान से तुम्हारा नाश हो सकता है. इंद्र अपना क्रोध रोक न सके और वज्र प्रहार करके उनका यज्ञवेदी पर ही संहार कर दिया. इस तरह वे ब्रह्महत्या के अपराधी बन गए.

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यज्ञवेदी पर बैठे ऋत्विक की हत्या के कारण इंद्र का शरीर गलने लगा. बृहस्पति ने तत्काल इंद्र का दिव्य तेज चार भागों में विभाजित करके धर्म, वायु और अश्विनी देवताओं में प्रवेश करा दिया. इस प्रकार इंद्र रक्षा हुई. पुत्र के वध की सूचना सुनकर त्वष्टा प्रजापति के क्रोध की सीमा न रही. उन्होंने अपनी जटा काटकर होम कुंड में फेंक दी. इससे एक भयानक राक्षस वृत्रासुर प्रकट हुआ.

वृतासुर के आतंक से भयभीत इंद्र वहां से भाग गए. बाद में वृतासुर से मैत्री की और कहा कि मुझे केवल स्वर्ग पर शासन करने दो इसके अतिरिक्त हर स्थान पर तुम्हारा शासन रहेगा. वृतासुर मान गया. उसने रक्षकुल को पृथ्वी पर बढ़ाना शुरू किया. राक्षसों से धरती भर गई. वे पाप करने लगे.

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भूदेवी पाप के भार से विचलित हुईं और अमरावती जाकर इंद्र से कहा कि वह इस पाप का भार नहीं वहन कर सकतीं. इन पापियों से मेरी मुक्ति का उपाय आपका दायित्व है.

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