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संसार का सबसे बड़ा सुखी वह है जो मन के मौज में रहता है. आप यह क्यों नहीं सोचते कि ईश्वर ने आपको जितना दिया है संसार में अनगिनत लोग हैं उन्हें तो उतना भी नहीं मिला है. बस उसे क्यों देखते हो जिसे आपसे ज्यादा प्राप्त है. जो प्राप्त है उसमें भी जो मस्ती की धुन में रमा रहता है वही सच्चा सुखी है. निन्यान्वे के फेर में पड़ने से खुशियां रफूचक्कर हो जाती हैं.

आपको एक छोटी सी कथा सुनाएंगे. हो सकता है आपने यह कथा सुन भी रखी हो, इसलिए कथा से ज्यादा महत्वपूर्ण है, कथा के पीछे का भाव. उसका अर्थ. तो जो कथा आपने सुन ही रखी हो उसे फिर से क्यों पढे़ं? वह इसलिए क्योंकि कई बार अचानक किसी और का दुख देखकर अपना दुख छोटा पड़ जाता है. दुखियारे या परेशानहाल व्यक्ति ही किसी अन्य दुखी व्यक्ति के सच्चे मार्गदर्शक बन पाते हैं.

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कहते हैं न अपने दिल से जानो पराए दिल का हाल. पराए दुख का हाल तो वही सबसे अच्छा समझ सकता है जो खुद इसे झेल रहा हो. वही सच्चा मार्गदर्शक बनकर उसे दुख से निकाल सकता है. इसी में काम आती हैं, ऐसी छोटी-छोटी कथाएं. अंत तक पढ़ सके तो इसकी गूढ़ बात इसकी अहमियत समझ में आएगी. ईश्वर की कृपा क्या होती है इसे समझ पाएंगे. नहीं पढ़ सके अंत तक तो यह भी एक आमकथा है.

शुरू करता हूं.

संतों की एक सभा चल रही थी. किसी ने एक दिन एक घड़े में गंगाजल भरकर वहां रखवा दिया ताकि संतजन जब प्यास लगे तो गंगाजल पी सकें. संतों की उस सभा के बाहर एक व्यक्ति खड़ा था. उसने गंगाजल से भरे घड़े को देखा तो उसे तरह-तरह के विचार आने लगे.

वह सोचने लगा- अहा! यह घड़ा कितना भाग्यशाली है! एक तो इसमें किसी तालाब पोखर का नहीं बल्कि गंगाजल भरा गया और दूसरे यह अब सन्तों के काम आयेगा. संतों का स्पर्श मिलेगा, उनकी सेवा का अवसर मिलेगा. ऐसी किस्मत किसी किसी की ही होती है.

घड़े ने उसके मन के भाव पढ़ लिए. घड़ा बोल पड़ा- बंधु मैं तो मिट्टी के रूप में शून्य पड़ा था. किसी काम का नहीं था. कभी नहीं लगता था कि भगवान् ने हमारे साथ न्याय किया है. फिर एक दिन एक कुम्हार आया.

उसने फावड़ा मार-मारकर हमको खोदा और गधे पर लादकर अपने घर ले गया. वहां ले जाकर हमको उसने रौंदा. फिर पानी डालकर गूंथा. चाकपर चढ़ाकर तेजी से घुमाया, फिर गला काटा. फिर थापी मार-मारकर बराबर किया.

बात यहीं नहीं रूकी. उसके बाद आंवे के आग में झोंक दिया जलने को.

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