आदिशक्ति माता भगवती के सहस्त्रों नाम हैं। लेकिन सबसे ज्यादा प्रचलित नाम दुर्गा ही है। इसी नाम से भक्त सबसे ज्यादा मां भगवती की पुकारते हैं। दरअसल दुर्गम नाम के दैत्य का वध करने की वजह से माता को दुर्गा नाम से पुकारा गया। माता को भक्तजन दुर्गा नाम से इसलिए भी पुकारते हैं, कि इसी स्वरुप में माता ने अपने पुत्रों पर अपार करुणा बरसाई। उनके लिए अपने नेत्रों से जल बरसाया और अपने पवित्र हाथों से फल मूल शाक का भोजन कराया।  आज हम आपके लिए लेकर आएं हैं, यह कथा।

असुरराज हिरण्याक्ष के वंश में एक महा शक्तिशाली दैत्य उत्पन्न हुआ, रुरु नाम असुर के इस पुत्र का नाम रखा गया दुर्गमासुर। इसने ब्रह्माजी की गठिन तपस्या की, जिसके कारण त्रिलोक में सभी लोग संतप्त हो गए। उसकी घोर तपस्या के परिणामस्वरुप ब्रह्मा जी को दुर्गमासुर के सामने प्रकट होना पड़ा। दुर्गम ने वरदान स्वरुप समस्त मंत्र और वेदों को ब्रह्माजी से मांग लिया। उसकी तपस्या के वशीभूत होकर ब्रह्मा जी को उसकी इच्छा पूरी करनी पड़ी।

 

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लेकिन इस वरदान का नतीजा बेहद बुरा रहा। ऋषियों और देवताओं के समस्त वेद तथा मंत्र लुप्त हो गए तथा स्नान, होम, पूजा, संध्या, जप इत्यादि का लोप हो गया। इस प्रकार जगत में घोर अनर्थ उत्पन्न हो गया तथा हविष्य का भाग न मिलने के परिणामस्वरूप देवता जरा और व्याधि ग्रस्त होकर निर्बल हो गए।

यही दुर्गमासुर का अभीष्ट भी था। देवताओं की यह दुर्दशा देखकर दुर्गमासुर ने सेना के साथ इंद्र की अमरावती पुरी को घेर लिया। देवता शक्ति से हीन हो गए थे, फलस्वरूप उन्होंने स्वर्ग से भाग जाना ही श्रेष्ठ समझा। भागकर वे पर्वतों की कंदरा और गुफाओं में जाकर छिप गए और सहायता हेतु आदि शक्ति अम्बिका की आराधना करने लगे।

हवन-होम आदि न होने के परिणामस्वरूप, जगत में वर्षा का अभाव हो गया तथा वर्षा के अभाव में भूमि शुष्क तथा जल विहीन हो गया और ऐसे स्थिति सौ वर्षों तक बनी रही। बहुत से जीव जल के बिना मारे गए,घर घर में शव का ढेर लगने लगा। इस प्रकार अनर्थ की स्थिति को देख, जीवित मानुष, देवता इत्यादि हिमालय में जा कर ध्यान, पूजा तथा समाधी के द्वारा आदि शक्ति जगदम्बा की आराधना कर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करने लगे।

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देवता, मनुष्य, यक्ष, गंधर्वों आदि की बारंबार स्तुति करने पर, समस्त भुवन पर शासन करने वाली भुवनेश्वरी, नील कमल के समान अनंत नेत्रों से युक्त स्वरूप में प्रकट हुई। काजल के समान देह, नील कमल के समान विशाल नेत्रों से युक्त देवी अपने हाथों में मुट्ठी भर बाण,विशाल धनुष, कमल पुष्प, पुष्प-पल्लव, जड़ तथा फल, बुढ़ापे को दूर करने वाली शाक आदि धारण की हुई थी।

माता भवानी के दिव्य तथा प्रकाशमान नेत्रों में अपने पुत्रों के लिए अपार करुणा भरी थी। जगद्धात्री, भुवनेश्वरी, समस्त लोको में, अपने सहस्त्रों नेत्रों से जलधाराएं गिराने लगी तथा नौ रातों तक घोर वर्षा होती रही। फलस्वरूप समस्त प्राणी तथा वनस्पतियां तृप्त हुई, समस्त नदियां तथा समुद्र जल से भर गए। सहस्त्रों नेत्रों से करुणा बरसाने वाली देवी को भक्तों ने शताक्षी के नाम से पुकारा। उन्होंने भूख प्यास के तड़प रहे अपने पुत्रों को खाने के लिए शाक तथा फल-मूल प्रदान किए, साथ ही नाना प्रकार के अन्न तथा पशुओं के खाने योग्य पदार्थ भी दिए। जिससे उनका एक नाम शाकम्भरी भी हुआ।

इस पूरे घटनाक्रम पर दुर्गमासुर के गुप्तचरों की आंखे लगी हुई थीं। उन्होंने जाकर दुर्गमासुर को यह सारी गाथा बताई और देवताओं की रक्षा के लिए जगदंबा के अवतार लेने की बात कहीं। तत्क्षण ही दुर्गमासुर क्रोधित होकर अपने समस्त अस्त्र-शस्त्र और अपनी सेना को साथ ले युद्ध के लिए चल पड़ा। दैत्यराज दुर्गमासुर ने देवता और मनुष्यों को अपनी शक्ति से पीड़ित करना शुरु कर दिया। उनकी रक्षा के लिए देवी ने चारो ओर तेजोमय चक्र बना दिया तथा स्वयं बाहर आ खड़ी हुई।

दुर्गम दैत्य तथा देवी के मध्य घोर युद्ध छिङ गया, तदनंतर देवी के शारीर से उनकी उग्र शक्तियां प्रकट हुई। काली, तारिणी या तारा, बाला, त्रिपुरा, भैरवी, रमा, बगला, मातंगी, कामाक्षी,तुलजादेवी, जम्भिनी, मोहिनी, छिन्नमस्ता, गुह्यकाली, त्रिपुरसुन्दरी तथा स्वयं दस हजार हाथों वाली अंबिका, प्रथम ये सोलह, तदनंतर बत्तीस, पुनः चौंसठ और फिर अनंत देवियाँ हाथों में अस्त्र शस्त्र धारण किये हुए प्रकट हुई।

जगदंबा के कोप से दस दिन में दैत्यराज की सभी सेनाएं नष्ट हो गई तथा ग्यारहवें दिन देवी के बाणों के प्रहार से आहात हो, दुर्गमासुर रुधिर का वामन करते हुए, देवी के सन्मुख मृत्यु को प्राप्त हुआ तथा उसके शरीर से तेज निकल कर देवी के शरीर में प्रविष्ट हुआ। इसके पश्चात् ब्रह्मा आदि सभी देवता, भगवान् शिव तथा विष्णु को आगे कर, भक्ति भाव से देवी की स्तुति करने लगे।

इस प्रकार ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अन्य देवताओ के स्तुति करने तथा विविध द्रव्यों से पूजन करने पर देवी संतुष्ट हो गई तथा दुर्गा नाम से जानी जाने लगी। देवता द्वारा किये हुए स्तवन में, देवी दुर्गा को तीनो लोकों की रक्षा करने वाली, मोक्ष प्रदान करने वाली, उत्पत्ति, स्थिति तथा संहार करने वाली कहा गया हैं।  दुर्गा भवानी ही आदिशक्ति अम्बिका की शक्ति है।

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