[sc:fb]

दैवयोग से तभी जया नामक एकादशी आई. उस दिन उन्होंने कुछ भी भोजन नहीं किया और न कोई पाप कर्म ही किया.

केवल फल-फूल खाकर ही दिन व्यतीत किया और सायंकाल के समय दु:खी मन से पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गए. उस समय सूर्य भगवान अस्त हो रहे थे.

उस रात को अत्यन्त ठंढ़ थी, इस कारण वे दोनों शीत के मारे अति दुखित होकर मृतक के समान पड़े रहे. उस रात्रि उनको निद्रा भी नहीं आई.

हे राजन्! इस प्रकार उनसे जया एकादशी का उपवास और रात्रि जागरण हो गया. जिसके पुण्यफल से दूसरे दिन प्रभात होते ही उनकी पिशाच योनि छूट गई. सुंदर गंधर्व और अप्सरा की देह धारण कर वस्त्र आभूषणों से अलंकृत होकर उन्होंने स्वर्गलोक को प्रस्थान किया.

उस समय आकाश में देवता उनका स्वागत करने लगे. स्वर्गलोक में जाकर इन दोनों ने देवराज इंद्र को प्रणाम किया. इंद्र इनको पूर्व रूप में देखकर आश्चर्यचकित हुए.

इंद्र ने पूछा कि तुम दोनों ने अपनी पिशाच योनि से किस तरह छुटकारा पाया.

माल्यवान बोले- हे देवेन्द्र! भगवान विष्णु की कृपा और जया एकादशी के व्रत के प्रभाव से ही हमारी पिशाच देह छूटी है.
शेष अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here