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उन्हें रोके रखने के लिए सियार ने नीति की बातें छेड़ दीं- जो रोगी हो, जिस पर अभियोग लगा हो और जो श्मशान की ओर जा रहा हो उसे बंधु-बांधवों के सहारे की जरूरत होती है.
सियार की बातों से परिजनों को कुछ तसल्ली हुई और उन्होंने तुरंत वापस लौटने का विचार छोड़ा. अब गिद्ध को परेशानी होने लगी. उसने कहना शुरू किया.
तुम ज्ञानी होने के बावजूद एक कपटी सियार की बातों में आ गए. एक दिन हर प्राणी की यही दशा होनी है. शोक त्यागकर अपने-अपने घर को जाओ.
जो बना है वह नष्ट होकर रहता है. तुम्हारा शोक मृतक को दूसरे लोक में कष्ट देगा. जो मृत्यु के अधीन हो चुका क्यों रोकर उसे व्यर्थ कष्ट देते हो?
लोग चलने को हुए तो सियार फिर शुरू हो गया- यह बालक जीवित होता तो क्या तुम्हारा वंश न बढाता? कुल का सूर्य अस्त हुआ है कम से कम सूर्यास्त तक तो रुको.
अब गिद्ध को चिंता हुई. गिद्ध ने कहा- मेरी आयु सौ वर्ष की है. मैंने आज तक किसी को जीवित होते नहीं देखा. तुम्हें शीघ्र जाकर इसके मोक्ष का कार्य आरंभ करना चाहिए.
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