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जीवन का लक्ष्य क्या होना चाहिए? किसी के साथ प्रतिस्पर्धा? सामने किसी की छवि को रख लेना और बस वैसा ही बन जाने की होड़ में शामिल हो जाना. इससे तो हम अपनी मौलिकता से दूर हो सकते हैं.
क्या पता हमे ईश्वर ने उससे बेहतर बनने के लिए भेजा था किंतु अपनी संकुचित सोच के कारण हमने अपना लक्ष्य ही बहुत छोटा कर लिया.
चलिए इस बात को आपको एक प्रेरक कथा के माध्यम से समझाता हूं. मुझे अपनी बात कहने का यही तरीका आता है.
बुद्ध ने जब ज्ञान प्राप्त कर लिया और उनका संदेश धीरे-धीरे समाज में फैलने लगा तो अपार जनसमुदाय प्रेरित हुआ, आकर्षित हुआ. जिन राजाओं ने उनका कड़ा विरोध किया था वे अपने पुत्रों को बुद्ध के पास भेजने लगे.
ऐसे ही एक राजकुमार थे- श्रोण. सच्चे हृद्य के शांत और संयमित. विद्वान और गुणवान. राजकुमार श्रोण ने बुद्ध से दीक्षा ली और भंते जैसा जीवन जीने को प्रेरित हुए.
बुद्ध भी राजकुमार थे. उन्होंने सारा राजसी ठाठ त्यागा था. साधना की और ऐसे हो गए कि संसार उनका अनुसरण कर रहा है. एक राजकुमार रहते और फिर राजा बन जाते तो क्या खास बात थी.
ऐसे तो अनगिनत राजा हैं, हुए हैं और आगे भी होंगे. पर बुद्ध वाली प्रसिद्धि सबको कहां! श्रोण के मन में यही बात सबसे ज्यादा टिकी रही.
श्रोण का जीवन राजसी ऐशो-आराम में बीता था. वह तो राजकुमार बुद्ध के साथ अव्यक्त प्रतिस्पर्धा में थे. यही सोचकर श्रोण कठिन तप करने लगे.
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Bhagti saga
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