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डाकू को उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ. उसने क्रोध में ऋषि प्रकृत्य को जोर से धक्का मारा. ऋषि ठोकर खाकर शिवलिंग के पास जाकर गिरे और उनका सिर फट गया. रक्त की धारा फूट पड़ी.

इसी बीच आश्चर्य ये हुआ कि ऋषि प्रकृत्य के गिरने के फलस्वरूप शिवालय की छत से सोने की कुछ मोहरें अस्थिमाल के सामने गिरीं. अस्थिमाल अट्टहास करते हुए बोला तू ऋषि होकर झूठ बोलता है.

झूठे ब्राह्मण तू तो कहता था कि यहाँ कोई धन नहीं फिर ये सोने के सिक्के कहां से गिरे. अब अगर तूने मुझे सारे धन का पता नहीं बताया तो मैं यहीं पटक-पटकर तेरे प्राण ले लूंगा.

प्रकृत्य ऋषि करुणा में भरकर दुखी मन से बोले- हे शिवजी मैंने पूरा जीवन आपकी सेवा पूजा में समर्पित कर दिया फिर ये कैसी विपत्ति आन पड़ी? प्रभो मेरी रक्षा करें. जब भक्त सच्चे मन से पुकारे तो भोलेनाथ क्यों न आते.

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