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शिव महापुराण में केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के संबंध में दो कथाएं आती हैं जो काफी प्रचलित है. आज हम आपको एक कथा सुनाते हैं. दूसरी कथा कल सुनाएंगे.
महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया. नारायण की सहायता से पाण्डव विजयी हो तो गए परंतु युद्ध में हुए रक्तपात और अपने कुल के नाश की मानसिक वेदना से ग्रस्त रहने लगे.

इस पीड़ा से मुक्ति की राह पूछने पांडव वेद व्यासजी के पास गए. व्यासजी ने कहा नारायण की आप पर कृपा है ही, यदि महादेव के दर्शन हो जाएं तो पापों का नाश होगा. इस तरह मानसिक पीड़ा से मुक्ति मिलेगी.

व्यासजी ने पांडवों को बताया कि उन्हें महादेव के दर्शन केदारनाथ में ही होंगे. उन्होंने केदारनाथ की महिमा और उसका मार्ग विस्तार से बताया किंतु पांडव इतने पीड़ित थे कि वे महादेव के दर्शन को व्याकुल थे.

वे पहले काशी ही पहुंच गए किंतु महादेव कुलघातियों को प्रत्यक्ष दर्शन नहीं देना चाहते थे इसलिए वहां से अंतर्धान हो गए. पांडव निराश होकर वेदव्यासजी द्वारा बताए केदारनाथ की ओर चले.

अनेक कष्टों का सामना करते जब वे केदारनाथ पहुंचे तो महादेव गुप्तकाशी में जाकर अंतर्धान हो गए. भोलेनाथ ने पांडवों को केदारक्षेत्र में देखा तो वह गुप्तकाशी में चले गए.

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