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कृष्णा जंगल में दादी के बताए रास्ते पर बढ़ने लगा पर आज अकेला था. उसे डर लगने लगा.
डर में उसने पुकार लिया- गोपाल भैया तुम कहां हो। मेरे सामने आ जाओ, मुझे डर लग रहा है. लेकिन जंगल में उसकी अपनी ही आवाज गूंज गईं.
पांच साल का छोटा बालक कृष्णा डरता सहमता अपने रास्ते पर बढ़ता रहा. आगे जाकर जंगल और घना हो गया. कृष्णा ने फिर पुकारा गोपाल भैया तुम कहां हो. मुझे डर लग रहा है, आ जाओ. दादी ने तो कहा था तुम पुकारते ही चले आओगे.
नन्हे से बालक कृष्णा की आवाज में जो विश्वास था. भगवान उसकी उपेक्षा नहीं कर पाए और तत्काल चले आए. कृष्णा को अपने कानों में मुरली की मधुऱ धुन सुनाई देने लगी.
सहसा कृष्णा ने देखा जो जंगल अभी तक डरावना लग रहा था, अचानक मनोरम हो गया. जंगली जानवरों की आवाजें बंद हो गईं. उनकी जगह गायों के रंभाने और बछड़ों के किलकने की आवाज आने लगीं.
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बालक कृष्णा ने देखा, दूर से एक चौदह पंद्रह साल का किशोऱ बांसुरी बजाते हुए उसकी ओर चला आ रहा था. बालक कृष्णा बिना कुछ कहे समझ गया कि यही उसका भैया गोपाल है.
आनंदकंद भगवान अपने गोपाल स्वरुप में लीला के लिए एक बार फिर से उपस्थित थे क्योंकि ये बालक कृष्णा के विश्वास की पुकार थी. उसकी दादी की कृष्णभक्ति की परीक्षा थी.
बालक कृष्णा दौड़कर गोपाल भैया के गले लग गया और उन्हें देखता रह गया. माथे पर मोर मुकुट, पीले रंग की धोती, कंधे पर कंबली और हाथों में हरे बांस की मधुर बांसुरी. सभी भुवनों में प्रकाशित वो दिव्य स्वरूप बालक कृष्णा की भोली पुकार पर सम्मुख था.
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Jeevan dhanya ho gaya aapase judakar…
Very good.very nice post.