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प्रभु को ध्यान आया नलकूबर और मणिग्रीव उद्धार के लिए उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं. प्रभु ने माया रची. यशोदा ने ओखली पर चढ़के बंदरों को माखन बांटते देखा तो क्रोधित हो गईं. उन्होंने रस्सी उठाई और कान्हा को ओखली में बांधने लगीं.

प्रभु को बांध ले ऐसी रस्सी कहां! रस्सी छोटी पड गई. माता एक में एक रस्सी जोड़ती जातीं पर रस्सी थोड़ी छोटी ही पड़े. माता को बोध हुआ कि प्रभु को कैसे बांधेगी और उनका भाव बदलने लगा. प्रभु ने सम्मोहित करके वह भाव निकाल दिया.

माता ने उन्हें आखिर ओखली में बांध ही दिया तो प्रभु चले कुबेर के पुत्रों का उद्धार करने जो अर्जुन के वृक्ष बनकर द्वार पर खड़े थे. ऊखल घसीटते हुए दोनों वृक्षों के बीच अड़ाकर खींचा. इससे दोनों अर्जुन वृक्ष भयंकर आवाज से जड़ से उखड़ गए.

वहां पर नलकूबर और मणिग्रीव प्रकट हुए. उन्होंने भगवान की स्तुति की और अपने लोक को चले गए. वृक्षों के गिरने से नंदबाबा घबरा गए और उसके बाद कभी भी नटखट बाल-गोपाल को ऊखल से नहीं बांधा गया.

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