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यों तो मैं सिर्फ़ पार्टियों या फिर दोस्तों के साथ मिल कर ही शराब पीती हूँ- लेकिन एक तांत्रिक पुजारिन के घर बैठकर शराब पीने का यह पहला मौका था, शराब की बोतल पर एक लेबल लगा हुआ था, जिस में लिखा हुआ था टाइगर और उसमें सलमान ख़ान की फोटो भी लगी हुई थी- मुझे मालूम था कि माई मेरे उपर नज़र रखे हुए थी। वह समझ रही थी की धीरे धीरे मेरे उपर नशा चढ़ रहा है, क्योंकि वह मेरी मानसिक हालत से मानो हमेशा वाकिफ़ थी।
उसने तब मेरे बालों का फिर से एक जूड़ा बाँध दिया और बोली, “चल बेटी इससे पहले कि तू नशे में बेसुध हो जाए चूल्हा चौका संभाल ले। आज सुबह से इस घर में चूल्हा नही जला। आज से हम सिर्फ़ माँस खाएँगे और शराब पिएँगे, और हाँ संध्या, तू जब घर के काम करेगी या फिर बाथरुम जाएगी, तो अपने बाल बाँध लेना…”,
थोड़ा रुक कर माई ने कहा, “और हाँ बिटिया, तू एक काम कर। बस मेरे से कह देना, तेरे बाल मैं ही बनाउंगी।”
वह ऐसे बोल रही थी की मानो एक माँ अपनी दस साल की बेटी को समझा रही हो, “और खाली वक़्त अपने बाल खुले ही रखना,
मुझे एक बात बड़ी अजीब सी लगी, माई के घर के आँगन के बीचों बीच इतना बड़ा और घना सा पेड़ था- पर उसमें से मुझे सुबह से किसी चिड़िया या और कोई पक्षी की आवाज़ नही सुनाई दे रही थी | यहाँ तक कि जब मैं आँगन में झाड़ू लगा रही थी, तब भी मुझे पेड़ के आस पास ज़मीन पर किसी भी चिड़िया का पंख या फिर मल नहीं दिखा ।
शहर में मैं जिनके यहाँ मैं किराए पर रहती हूँ, उनके घर में भी एक बड़ा सा पेड़ है। जिसकी छाँव से छत हमेशा ठंडी रहती है, लेकिन छत पर कपड़े सुखाना नामुमकिन है, क्योंकि धुले हुए कपड़ो पर चिड़िया हमेशा गंदगी कर देती है। लेकिन यह पेड़ जैसे वीरान सा था। किसी चिड़िया का कोई घोंसला नही। एक गिलहरी तो दूर एक छिपकली भी नही।
अच्छा है मुझे छिपकलियों से बहुत डर लगता है |
मैं शाकाहारी परिवार की लड़की हूँ। मुझे माँस पकाना नही आता लेकिन जैसे जैसे माई ने कहा मैं वैसा ही करती गई। इसके बाद मांस तैयार हो गया।
फिर माई ने कहा, बिटिया आज से ले कर अमावस की रात तक तुझे सिर्फ़ माँस ही खाना होगा। मैने तुझे भेंट चढ़ने के लिए तैयार जो करना है। खूब शराब भी पीना होगा तुझे। मैं चाहती हूँ कि तू हमेशा नशे में रहे।
मुझे मालूम था कि मेरे साथ क्या होने वाला है और मैने अपनी नियति को स्वीकार भी कर लिया था; “लेकिन, मैं तो कभी भी इतना नही पीती”
“मैं पिलाउंगी ना तुझे। अब चल यह गिलास ख़तम कर ले”
कुछ देर बाद मैने माई से झिझकते हुए कहा, “माई, मुझे बाथरूम जाना है…”
“क्या?”, माई को समझ में नही आया |
मैने उसके कान के पास जा कर कहा। माई थोड़ा मुस्कुराई और एक लोटा पानी ले कर मुझे आँगन के पिछले दवाज़े से बाहर ले गई | घर के इस हिस्से को देखने का मुझे पहले मौका नही मिला था | पिछली तरफ एक पतला सा रास्ता जंगल की तरफ़ जाता था और रास्ते के बाँई तरफ एक बड़ा सा तालाब था और दांई तरफ की ज़मीन खाली पड़ी हुई थी…और घर से कुछ ही दूर एक टूटा फूटा सा शौचालय था… पुराने ज़माने के घरों के शौचालय घर के बाहर ही हुआ करते थे।
मैं उसे देखते ही डर गई, ना जाने उसके अंदर कितने भयानक छिपकिलियाँ और कीड़े मकोड़े होंगे।
” तुझे डर लगता है, बेटी?”, माई हंस पढ़ी |
मैने कहा, “हाँ”
“कोई बात नही तू यहीं कहीं झाड़ियों में बैठ जा…”
“लेकिन…”, मैं थोड़ा झिझक रही थी
“लेकिन वेकिन मत कर बेटी, टॉयलेट कर ले।
और हाँ बिटिया अकेली घर से बाहर मत निकलना… हमेशा मेरे साथ ही जाना |”
मेरे पास और कोई चारा नही था, मैं उस शौचालय में जाने से क़तरा रही थी, इस लिए मैं रास्ते के दांई तरफ़ की खाली ज़मीन की ओर बढ़ी, माई ने झट से मेरा हाथ पकड़ के मुझे रोका और बोली, “पागल हो गई है क्या… देख नही सकती कहाँ जा रही है? वह खाली ज़मीन – ज़मीन नही है- दलदल है वह… एक बार तेरा पाँव पड़ गया बस अंदर धँसती चली जाएगी तू…”
“मुझे क्या मालूम, माई”,मैनें कहा
माई मेरा हाथ पकड़ कर मुझे उस टूटे फूटे शौचालय के पास ले गयी और पास ही की झाड़ियों की तरफ इशारा करके बोली यहीं बैठ जा।
मैने वैसा ही किया।
माई ने लोटे से पानी लिया और धुला दिया।
माई ने पूछा, जैसा मैं कहूंगी वैसा करेगी ना बेटी।
“हाँ माई, मैने कहा ना… आप जैसा कहेंगी मैं वैसा ही करूँगी…”, मैने दलदल की तरफ देखते हुए कहा |
“बस तीन दिन की ही तो बात है- फिर मैं तुझे हमेशा के लिए आज़ाद का दूँगी…”, माई ने मुस्कुरा कर कहा |
अपना घर और अपना बिस्तर- तकिया ना हो तो मुझे ठीक से नींद नही आती और वैसे भी मैं तो माई ने तो मुझे क़ैद करके रखा था- ‘भेंट चढ़ने के लिए ‘- यह शायद देशी शराब का असर था कि मुझे थोड़ी नींद आ गई | लेकिन आँख खुलते के साथ ही, मैं मानो अपने हालत से दोबारा वाकिफ़ हो गई |
माई के कहे अनुसार मुझे आज से कुछ ख़ास नियम क़ानूनों को मान कर चलना था।
कुछ भी हो इस गाँव की आबोहवा में ऐसी ताज़गी थी जो कि शहर के वातावरण में नही होती है| आज घने बादल भी छाए हुए थे बिजली भी कड़क रही थी, लगता है कि ज़ोरों की बारिश होने वाली है |
मैंने धीरे धीरे उठ कर कमरे के बाहर आँगन में कदम रखा, माई तब भी सो रही थी | किसी भी दरवाज़े पर कोई भी ताला नही था, पर मैं भाग भी नही सकती थी, क्योंकि माई का टोटके की वजह से मैं अपने बदन पर कोई कपड़ा नही पहन सकती थी। बिना कपड़ो के इस वीरान इलाक़े से बाहर जाना नामुमकिन है |
मैं यह सब सोच ही रही थी कि अचानक मेरा ध्यान कहीं दूर से आ रही मंदिर की घंटियों और शंख की आवाज़ पर गया | मैं आवाज़ को सुनती हुई ना जाने कब घर के पिछले दरवाज़े से निकल कर जो पतला सा रास्ता शौचालय की तरफ जाता था-वहाँ खड़ी हो कर जंगल कि तरफ़ देखने लगी कि मंदिर की घंटियों, ढाक-ढोल की आवाज़ की आवाज़ और शंख ध्वनि जो मेरे अंदर एक जोश सा भर रही है – किस तरफ से आ रही है… मुझे लगा कि कुछ ही दूर ज़रूर कहीं माँ काली का कोई मंदिर होगा।
जहाँ सुबह सुबह आरती हो रही है, मैने तालाब में उतर कर एक डुबकी लगाई और अपने हाथ जोड़ कर माँ काली का स्मरण किया – “हे माँ काली, मेरी रक्षा करो…”
तभी ज़ोर से बिजली कड़क उठी और तेज़ बारिश शुरू हो गई |
मैं तालाब के पानी से निकल कर माई के घर के आँगन में गई और जल्दी जल्दी आँगन में सूख रहे माई के कपड़ों को उतारने लगी, फिर घर के बरामदे में आ कर एक गमछा ले कर अपने बाल और बदन पोंछने लगी, शुक्र है कि माई तब भी सो रही थी। उसे मालूम था कि मैं उसके घर कहीं भाग भी नही सकती थी, लेकिन उसने मुझे घर के बाहर अकेले जाने से माना कर रखा था |
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