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जब मैं कमरे में गई तो माई उठ चुकी थी | मैंने माई के कहे अनुसार ज़मीन पर घुटनो के बल बैठ कर अपना झुका कर ज़मीन पर टेक कर अपने बालों को सामने की तरफ़ फैला दिया, और बोली, “प्रणाम, माई!”

माई ने अपने दोनो पैर के तलवे मेरे बालों पर रख कर मुझे ‘आशीर्वाद’ दिया, और बोली, “आ बिटिया मेरे पास आ कर बैठ… बारिश हो रही है क्या?”

हाँ माई…”

“हाय दैया! मेरे कपड़े भीग जाएँगे…”

“मैं कपड़े उतार के ले आई…”

“और तू बारिश में भीग भी गई? तभी तो तेरे बाल गीलें हैं”

“हाँ, माई”

“माई, यहाँ आस पास कोई मंदिर है क्या?”

“हाँ, थोड़ी दूर ही काली मां का एक मंदिर है”

“आप कभी गई हैं वहाँ?”

“नही बेटी, मेरा रास्ता अलग है- मैं काली माँ के मंदिर के आस पास भी नही जा सकती …पर यह सब तू क्यूँ पूछ रही है?”

“जी कुछ नही… आप बैठिए, मैं पानी लाती हूँ आप मुंह हाथ धो लीजिए |”, ना जाने क्यों मुझे लग रहा था कि माई कुछ कमज़ोर सी लग रही थी…

“और हाँ, बिटिया- उसके बाद शराब की बोतल, दो गिलास और बचा हुआ माँस भी ले कर आना… बहुत भूख लगी है मुझे…और हाँ बिटिया, अब से हर रोज़ कल्लू आ कर खाने पीने का सामान दे कर जाएगा, याद रही उसकी नज़र तुझ पर नही पड़नी चाहिए |”

मुझे लग रहा था कि जैसे जब व्रत रखा जाता है, तो लोग ख़ान पान में परहेज़ करते हैं- वैसे ही शायद माई आज कल सिर्फ़ माँस और शराब पी रही थी और मुझे भी वैसा ही खिला पिला रही थी |

“जी माई..”, यह बोल कर मैं रसोई से शराब और माँस ले आई , माई मुंह हाथ धो कर पहले से ही ज़मीन पर उकड़ू हो कर बैठ कर खाने का इंतेज़ार कर रही थी। मैने दो थालियों में माँस परोसा और गिलास में शराब डाल कर माई की ओर बढ़ाया… माई ने मुझे अपने बिल्कुल पास आकर उकड़ू हो कर बैठने को कहा और अपने हाथों से मुझे उसने शराब का एक घूँट पिलाया।

माई बड़े लाड़ से बोली, “अब ऐसे आँखे फाड़ फाड़ कर मत देख बेटी, चल शराब पी कर नशा कर ले…तुझे घर के काम भी तो करने हैं… थोड़ी देर में कल्लू भी आता होगा माँस और शराब ले कर, उससे पहले जा कर पानी भर ले… बरसात भी तेज़ हो रही है…कोई बात नही… मैं बदन पोंछ दूँगी और तेरे बाल सूखा कर कंघी कर दूँगी… आज रात से तुझे तो मेरी तांत्रिक पूजा में मदद भी करनी होगी…”

आधी रात होने को आई थी, बारिश रुक चुकी थी माई मेरे बालों को समेट कर मेरी गर्दन के पास अपने बाँये हाथ मुठ्ठी मे एक पोनी टेल जैसे गुच्छे में करके पकड़ कर बड़े जतन के साथ मुझे कुँए के पास ले गई और उसने मुझे दोबारा नहलाया लेकिन इसबार उसने मेरे बाल नही सुखाए और बदन भी नही पोछा। कल्लू जो श्मशान की राख और मिट्टी ले कर आया था, उसमे से थोड़ा सा अपनी मुठ्ठी में ले कर उसने मेरे माथे पर मल दिया |

फिर उसने मुझे थोड़ी और शराब पिलाई।

मैं तो पहले से ही नशे में लड़खड़ा रही थी; लेकिन जैसा जैसा माई ने कहा मैं करती गई |

माई के कहे अनुसार मैंने रसोई से लकड़िया ला कर कल्लू के खोदे हुए गढ्ढे में डाला और फिर आग जलाई… माई न ज़ाने क्या मंत्र वंत्र बड़बड़ाती हुई अपनी माला जपने लगी और उनके इशारे पर मैं आग में घी डालती रही |

माई उस शैतानी आत्मा को खुश करने की कोशिश कर रही थी… मेरे पास माई का कहा मानने के अलावा और कोई चारा नही था |

माई की तांत्रिक क्रिया ख़तम होने के बाद उसने मुझे कुँए के पास ले जा कर फिर से नहलाया और मेरा गमछे से मेरे बाल और बदन को सूखाया फिर मुझे खाना खिलाने के बाद वह मुझसे लिपट कर सो गई |यह सिलसिला अगले तीन दिन तक चलता रहा, लेकिन हर सुबह मेरी नींद दूर से आ रही मंदिर में चल रही आरती की आवाज़ से खुल जाती और मैं चुपके चुपके घर से निकल कर तालाब में डुबकी लगा कर सिर्फ़ एक ही प्रार्थना करती-“हे मां काली, मेरी रक्षा करो!”

आज अमावस है | सुबह काफ़ी बारिश हुई थी बादल छाए हुए थे, चारों तरफ़ मानो एक अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ था और बादलों की वजह से एक धुँआ सा छाया हुआ था | हर रोज़ की तरह मैं चुपके चुपके तालाब में डुबकी लगा कर अपनी प्रार्थना कर आई थी | बूंदा बाँदी चल रही थी, मैने देखा की आँगन की नाली में कुछ फँस गया है, इसलिए आँगन में पानी जाम रहा था और धीरे धीरे कल्लू के द्वारा माई के लिए खोदे हुए अग्नि कुंड की तरफ बढ़ रहा था |

मैंने झाड़ू ले कर नाली की रुकावट को दूर किया, जमा हुआ पानी तेज़ी से निकल ने लगा। बारिश थोड़ी तेज़ हो गई और तब तक माई भी उठ गई थी मुझे अपने बगल में ना पाकर शायद थोड़ा परेशान सी हो गई थी- आज वह जैसे और भी कमज़ोर लग रही थी- मेरा अंदाज़ा सही था; तांत्रिक क्रियाओं का कुछ असर उसके शरीर पर पड़ रहा था।

“क्या कर रही है मेरी बच्ची?”, माई ने पूछा“आँगन में पानी जाम रहा था, माई… और हवन कुंड की तरफ आ रहा था, इस लिए मैने नाली साफ करके झाड़ू लगा रही थी…”

“हाय- हाय, मुझे उठा तो दिया होता, मैं तुझे अपने हाथों से थोड़ा शराब पीला देती- तेरे बदन में गर्मी तो रहती, आज तू भेंट चढ़ेगी बेटी। बीमार पड़ गई तो?”

“आजकल आपकी तबीयत भी तो कुछ ढीली लग रही है माई, इसलिए मैने सोचा की नाली साफ कर दूं, वरना सारे आँगन में पानी पानी हो जाएगा…”

“हाँ, तूने सही कहा बिटिया | मेरी तबीयत थोड़ी ढीली है,पर आज रात के बाद मैं बिल्कुल ठीक हो जाउंगी… मेरी शक्तियाँ और बढ़ जाएँगी, पर बेटी यह सब तो तेरी वजह से ही तो होगा ना… आज तू भेंट चढ़ेगी उससे पहले अगर तू बीमार पड़ गई तो?”

मैं चुपचाप सर झुका कर हाथ में झाड़ू ले कर खड़ी बारिश में भीगती रही |

“अरी लड़की, खड़ी खड़ी मेरा मुंह क्या देख रही है? चल चल अंदर आ… थोड़ा पी कर अपना बदन गरम कर ले, अगर सारा दिन तू बारिश में भीगेगी तो भी तुझे ठंड नही लगेगी.. उसके बाद फिर कुँए से पानी भर लेना, चूल्हा चौका भी तो संभालना है तुझे… उसके बाद तेरे और भी काम हैं आज… और देख तेरे बदन पर तो कीचड़ के छींटे भी लग गये हैं… हाय रे दैया शराब पिलाने के बाद मैं तुझे नहला भी दूँगी…

थोड़ी देर में कल्लू भी आता होगा, शराब और माँस ले कर… मैं नही चाहती कि भेंट चढ़ने से पहले वह तुझे देखे…”

मेरे मन में एक ही बात गूँज रही थी – हे मां काली, मेरी रक्षा करो |

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